सांप पकड़ने गए थे सद्गुरु, खतरनाक कोबरा ने 3 बार डसा; जानिये कैसे बची जान

सद्गुरु जग्गी वासुदेव को 5 साल की उम्र से सांपों से लगाव हो गया था. वह अपने घर में सांप पालने लगे थे. थोड़े बड़े हुए तो आस-पास के इलाके में सांप पकड़ने वाले के रूप में मशहूर हो गए और सांप पकड़कर अपनी पॉकेट मनी यानी जेब खर्च का इंतजाम करने लगे. अरुंधति सुब्रमण्यम ने हाल ही में पेंगुइन से प्रकाशित सद्गुरु की जीवनी ‘युगन युगन योगी: सद्गुरु की महायात्रा’ में उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला है. अरुंधति लिखती हैं कि सद्गुरु ने अपने माता-पिता से एक भी रुपया जेबखर्च नहीं लिया. छठवीं-सातवीं कक्षा में पहुंचते-पहुंचते सांप पकड़ने का हुनर उनके लिए बड़ा फायदेमंद साबित हुआ. अपने लिए खुद पैसे कमाने लगे.

सांप पकड़ कमा लेते थे 200 रुपये
उन दिनों सद्गुरु के घर के एक बड़ा सेंट्रल इंस्टीट्यूट था, जिसके अहाते में बहुत से सांप थे. वहां छोटा सांप पकड़ने के 25 रुपये और कोबरा जैसा बड़ा सांप पकड़ने पर 50 रुपये मिलते थे. तब पचास रुपये बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. बकौल सद्गगुरु जिस दिन शनिवार को वह इंस्टीट्यूट पहुंच जाते तो दोपहर तक 3 या 4 सांप पकड़ लेते और डेढ़-दो सौ रुपये कमा लेते थे. एक दिन जग्गी को पास के एक ट्यूब लाइट कारखाने में घुसे हुए एक सांप को पकड़ने को बुलाया गया. जब जग्गी ने उस सांप को पकड़ा तो सबकी घिग्घी बंध गई. वो 12 फिट का कोबरा था.

घर ले आए 12 फिट का कोबरा
अरुंधति सुब्रमण्यम लिखती हैं कि जग्गी, अपने इस बेशक़ीमती शिकार को खोना नहीं चाहता थे. लिहाजा उस सांप को अपने घर ले आए और चुपके से बिस्तर के नीचे छिपा दिया. जल्दी ही दोनों साथी बन गए. हालांकि कुछ दिनों बाद उनके पिता को इसकी खबर लग गई. बिस्तर के नीचे जार में बंद वह कोबरा तेज़ फुफकार रहा था. इससे जग्गी के पिता का माथा ठनका. जब उन्होंने बिस्तर के नीचे झांककर देखा तो दंग रह गए. बकौल सद्गुरु ‘मैंने उस सांप को कांच के एक बड़े जार में रखा हुआ था, जो ट्यूब लाइट वालों ने मुझे भेंट में दिया था. इसमें मैं सांप रख सकता था और जार का मुंह आंशिक रूप से बन्द कर सकता था. मैं उसे दिनभर जार में रखता. शाम को जब स्कूल से लौटता, तो उसे बाहर कहीं ले जाता और घुमा-फिरा कर वापस जार में डाल देता…’

जग्गी के पिता वो सांप देखकर भौंचक्का रह गए. घर में खूब हंगामा हुआ. सबने जग्गी को खरी-खोटी सुनाई. अरुंधति सुब्रमण्यम लिखती हैं कि सद्गुरु ने बड़े बेमन से सांप की जगह बदल दी. घर की छत में एक बड़े पिंजरे में उसे रख दिया. हालांकि घर वालों ने उसे बाहर छोड़ने को कहा था. यह सांप तीन साल उनके साथ रहा और इस दौरान परिवार का कोई सदस्य अपनी छत पर नहीं गया.

जब कोबरा ने डंस लिया
सांप को पकड़ने की आदत सद्गुरु के लिए मुसीबत भी बनी और उनकी जान जाते-जाते बची. अरुंधति सुब्रमण्यम लिखती हैं कि एक बार जग्गी एक पहाड़ी पर चट्टान की दरार से एक कोबरा को खींच रहे थे. उन्हें नहीं पता था कि अंदर एक नहीं बल्कि दो सांप हैं. इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, दूसरे कोबरा ने उनपर हमला कर दिया. ज़हरीले दांत तीन बार पैर में गड़ाए. आख़िरी बार तो बहुत ख़तरनाक ढंग से वार किया. इस बार पैर की उंगलियों के बीच के मांस में दांत चुभाए थे. बकौल सद्गुरु जब सांप का जहर आपके शरीर में प्रवेश करता है, तो अलग तरह का दर्द होता. यह दर्द इंजेक्शन जैसा होता है. मैं जान गया था कि यह मेरे शरीर में पहुंच चुका है, लेकिन कितना, यह मुझे मालूम नहीं था.