ऑफिस से छुट्टी की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची एक मां

नई दिल्ली. एक दिव्यांग बच्चे की मां को अपने बेटे की देखभाल के लिए छुट्टी न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई, जिस पर सोमवार को सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी मां को बाल देखभाल अवकाश (चाइल्ड केयर लीव) देने से मना करना कार्यबल में उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी सरकार के संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन होगा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने दिव्यांग बच्चों की कामकाजी माताओं को बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) देने के मुद्दे पर नीतिगत निर्णय लेने के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का भी निर्देश दिया.

कोर्ट ने कहा कि याचिका में एक ‘गंभीर’ मुद्दा उठाया गया है और वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी विशेषाधिकार का मामला नहीं, बल्कि एक संवैधानिक आवश्यकता है तथा एक आदर्श नियोक्ता के रूप में सरकार इससे अनजान नहीं हो सकती. शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि केंद्र को मामले में पक्षकार बनाया जाए. बेंच ने निर्णय देने में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से मदद मांगी.

इस बीच, इसने हिमाचल प्रदेश के अधिकारियों को सीसीएल देने संबंधी याचिका पर विचार करने का भी निर्देश दिया. याचिकाकर्ता महिला राज्य में भूगोल विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं. उनका बेटा आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित है और जन्म के बाद से उसकी कई सर्जरी हो चुकी हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘बाल देखभाल अवकाश एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य को पूरा करता है, जहां महिलाओं को कार्यबल में समान अवसर से वंचित नहीं किया जाता.’ कोर्ट ने कहा कि ऐसी छुट्टियों से इनकार कामकाजी मां को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है तथा विशेष जरूरतों वाले बच्चों की माताओं के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है.

न्यायालय ने राज्य सरकार को सीसीएल पर अपनी नीति को संशोधित करने का निर्देश दिया, ताकि इसे दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुरूप बनाया जा सके. इसने कहा कि समिति में मुख्य सचिव के अलावा राज्य के महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण विभाग के सचिव होंगे तथा उसे 31 जुलाई तक सीसीएल के मुद्दे पर निर्णय लेना होगा.