किसान उगा रहे धान, 100 नई इंडस्ट्री लगाने की तैयारी

ेशभर में जो पोहा इंदौर के नाम से बिक रहा वह हम बनाते हैं, हमारी तकनीकी व हवा-पानी से आता है वह स्वाद जिसे देशभर में पसंद किया जाता है, लेकिन हमें इसका फायदा नहीं मिल रहा। अब इस हालात को बदलेंगे। नया साल 2021 यह उम्मीद लेकर आया है। हमारे किसान अब धान पैदा करने की तकनीकी सीख गए हैं। सरकार पोहा क्लस्टर बनाने को तैयार है। शहर में 100 पोहा इंडस्ट्री लगाने की तैयारी भी है।
उज्जैन में 75 साल से पोहा इंडस्ट्री चल रही है। उज्जैन का बना पोहा ही देशभर में इंदौर के नाम से पहुंचता है। क्योंकि हमने समय रहते इसकी ब्रांडिंग नहीं की। इंदौर के व्यापारियों ने पोहा को अपना ब्रांड बना कर बेचना शुरू किया। इंदौर के रास्ते देशभर में पहुंचा हमारा पोहा स्वाद में लाजवाब होने से सबसे ज्यादा पसंद किया गया। इसलिए इसकी डिमांड लगातार बनी हुई है। लेकिन इस इंडस्ट्री का विस्तार नहीं हो रहा। इसके उद्योग कम होने से हम उतना उत्पादन नहीं कर पा रहे कि नई डिमांड की पूर्ति कर सकें। इसका एक बड़ा कारण दाम के स्तर पर हमारे उद्यमी देश के अन्य हिस्सों में बनने वाले पोहे की कीमतों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।
यही कारण है कि नए उद्यमी आए भी लेकिन सफल नहीं हो सके। इससे संभावना के बावजूद यह इंडस्ट्री पिछड़ कर जहां की तहां रह गई है। पुराने उद्यमी अपनी साख के बल पर किसी तरह उद्योग चला रहे हैं। पोहा उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष गिरीश माहेश्वरी कहते हैं कि पोहा उद्योग मुश्किल के दौर से गुजर रहा है। यदि हालात नहीं सुधरे तो यह इंडस्ट्री खत्म हो जाएगी। क्योंकि नए उद्यमी बाजार की प्रतियोगिता का सामना नहीं कर पा रहे। पुराने उद्यमी ही हैं जो इसे बचाए हुए है। इन उद्योगों से शहर के करीब 1500 श्रमिकों और अन्य लोगों को रोजगार मिल रहा है।
40 इंडस्ट्री, रोज 200 टन उत्पादन, डिमांड ज्यादा लेकिन पूर्ति नहीं कर पा रहे
शहर में करीब 40 पोहा-परमल इंडस्ट्री चल रही हैं। इनमें रोज 200 टन पोहा-परमल बनाया जाता है। यह पोहा प्रदेश के जिलों के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के प्रमुख जिलों में भी पहुंचता है। अन्य राज्यों से भी डिमांड आती है लेकिन पूर्ति नहीं कर पाते। माहेश्वरी बताते हैं कि हिमाचल व पंजाब से बड़ी डिमांड है लेकिन हम हां नहीं कह पा रहे। जितनी डिमांड पहले से है, उसकी पूर्ति ही कर पा रहे हैं। नया काम लें लेकिन उसकी पूर्ति कैसे करें। नए उद्योग लग नहीं रहे क्योंकि कॉम्पिटिशन इतना है कि वे उसके सामने ठहर नहीं पाते।
एक इंडस्ट्री को लगाने में कम से कम 3 से 5 करोड़ रुपए का निवेश होता है। यदि उत्पादन से इसका ब्याज भी नहीं निकले तो कैसे कोई उद्योग चला पाएगा। जो उद्योग चल रहे हैं वे पुराने हैं और कम पूंजी में लग गए थे। इसलिए वे जैसे-तैसे चल रहे हैं। उनकी साख है, इसलिए वे चल पा रहे हैं। नए उद्योग को जमने में समय और पैसा दोनों लगता है।
गुजरात, छत्तीसगढ़ से आता है चावल, तकनीक उज्जैन की
उज्जैन में बने पोहे को इसलिए पसंद किया जाता है, क्योंकि उसमें अलग तरह की मिठास होती है। यह मिठास अन्य राज्यों या शहरों में बने पोहे में नहीं होती। यह मिठास बनाने की तकनीकी और हवा-पानी के कारण आती है। इसी कारण उज्जैन में बना पोहा ज्यादा चलता है। हकीकत यह है कि पोहा बनाने के लिए चावल गुजरात, ग्वालियर, जबलपुर, होशंगाबाद से आता है। पहले नलखेड़ा बेल्ट में भी चावल होता था।
अन्य राज्यों का चावल सस्ता, इसलिए करनी पड़ती स्पर्धा
वर्तमान में उज्जैन के पोहे के दाम 29 से 34 रुपए किलो हैं, जबकि गुजरात, छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों का पोहा इससे कम कीमत पर मिलता है। स्वाद के कारण उज्जैन के पोहे की डिमांड रहती है। नए उद्योगों को इस प्रतियोगिता में जमने में परेशानी आती है। अपना माल बेचने के लिए बाजार की स्पर्धा का सामना तो करना ही पड़ता है, तब साख बनती है। इतने समय तक टिके रहने की ताकत उद्यमी में होना चाहिए।
कोरोना काल में लगाए लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी
कोरोना के लॉकडाउन ने इस उद्योग की कमर तोड़ रखी है। उद्यमी मयंक पटेल बताते हैं कि पोहा स्टूडेंट और मजदूरों का खास नाश्ता है। कोटा जैसे एजुकेशन हब में 2 लाख विद्यार्थी पढ़ते हैं जो सुबह पोहा का नाश्ता करते थे। लॉकडाउन में स्कूल, कॉलेज, होस्टल बंद हैं। इससे एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग टूट गया है। ठेले पर पोहे के स्टॉल लगाने वालों ने दूसरा काम शुरू कर दिया। लॉकडाउन के पहले के मुकाबले 20 फीसदी डिमांड रह गई है।
नए उद्यमी तैयार, मंडी टैक्स हट जाने से उद्योग को मिला नया सहारा
पोहा उद्योग में नए उद्यमियों की रुचि बनी हुई है। मप्र शासन की एक योजना में नए उद्यमियों को प्रोत्साहन देने की नीति तय हुई है। इसके लिए उद्योग विभाग ने प्रस्ताव मांगे हैं। करीब 400 प्रस्तावों में एक तिहाई पोहा-परमल उद्योग के हैं। एसोसिएशन अध्यक्ष माहेश्वरी कहते हैं कि यदि उद्योग की समस्याएं हल हों, धान का उत्पादन क्षेत्र में हो, सरकारी मदद मिले तो 100 नए उद्योग लगने को तैयार हैं। सचिव मयंक पटेल कहते हैं कि धान की खेती को लेकर प्रशासन आदि से बातचीत हुई है। उद्यमी वल्लभ नागर बताते हैं इंडस्ट्री के लिए केंद्र सरकार की नई नीति वरदान साबित हो रही है, इसमें मंडी टैक्स खत्म हो जाने से किसान और उद्यमी को दोनों को फायदा हुआ है। इससे फेयर कॉम्पिटिशन शुरू हुआ है।
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उज्जैन का ड्यूरम गेहूं पास्ता और नूडल्स के लिए सबसे अच्छा, इंटरनेशनल मांग- यूनिट्स लगाएं
उज्जैन जिले में ऐसे कृषि उत्पादन विपुल मात्रा में होते हैं जिन्हें प्रोसेसिंग से जोड़ा जाए तो यहां के किसानों और मजदूरों की किस्मत बदल सकती है। इनके घरों में धन बरसेगा। अभी यहां केवल कच्चा माल तैयार हो रहा है और बाहर बेचा जा रहा है, जिससे उसकी वह कीमत नहीं मिल रही जो हासिल की जा सकती है। यह उत्पादन केवल यहां के लिए नहीं है, उसे बाहर के लिए तैयार करना होगा। उसे कीमती बनाना होगा। जैसे आलू यदि खेत से निकला जस का तस बेचा जाता है तो उसकी ढुलाई भी ज्यादा लगती है और कम मात्रा में ही बाहर भेजा जा सकता है।
उसका पावडर तैयार कर बेचा जाए तो कम खर्च में ज्यादा माल बेचा जा सकता है वह भी ज्यादा कीमत पर। चिप्स बनाकर पैकिंग में बेचेंगे तो यह आलू ज्यादा कीमत देगा। यहां के ड्यूरम गेहूं से सबसे अच्छा पास्ता और नूडल्स बनते हैं। विदेश तक उसकी मांग है। लेकिन हमारे किसान औने-पौने दाम पर इसे बेचने को मजबूर हैं। यहां पास्ता और नूडल्स क्यों नहीं बना सकते? यहां का ब्रांड होगा जो इंटरनेशनल मार्केट में जाएगा।
यहां का पोहा-परमल दूसरे नाम से बिक रहा है। यहां इमली, जामफल, गोभी, प्याज का अच्छा उत्पादन होता है। इनकी प्रोसेसिंग यूनिट्स लगेंगी तो इनकी कीमतें बढ़ जाएंगी। इनके माध्यम से उज्जैन उद्योग-धंधों में आगे जा सकता है। नर्मदा का पानी आ रहा है। जमीन है। सरकार की वन क्रॉप पॉलिसी का लाभ लिया जा सकता है, इसके लिए सावधानी से फसल का चयन करना होगा। उज्जैन सब्जियों का भी बड़ा उत्पादक है। रिलायंस फ्रेश जैसी कंपनियों के साथ तालमेल कर उनके हब बनाए जा सकते हैं।