जेटली बोले- NPA की समस्या UPA सरकार की देन, बांटे गए थे ‘अंधाधुंध कर्ज’

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि संप्रग के दौरान उच्च आर्थिक वृद्धि के आंकड़े और बैंकों के फंसे कर्जों (एनपीए) की बाढ़ दरअसल 2008 के वैश्विक ऋण संकट से पहले और बाद में दिए गए अंधाधुंध कर्ज की वजह से है.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों को लेकर सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस में जुबानी जंग के बीच जेटली ने कहा कि उस समय की वृद्धि अंधाधुंध ऋण के बलबूते थी. बैंकों ने उस समय अव्यावहारिक परियोजनाओं को ऋण दिया, जिसके कारण बैंकिंग प्रणाली में एनपीए 12 प्रतिशत पहुंच गया है. उन्होंने कहा कि इन्हीं वजहों से 2012-13 और 2013-14 में वृहत आर्थिक समस्याएं खड़ी हुई.

जेटली ने चिकित्सकीय कारणों से लंबे अवकाश के बाद पिछले सप्ताह ही वित्त मंत्रालय का कार्यभार फिर से संभाला है. वह गुर्दा प्रत्यारोपण के कारण अप्रैल से अवकाश पर थे और उनकी जगह रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था.

जेटली ने बैंकरों के निकाय भारतीय बैंक संघ (आईबीए) की सालाना आम बैठक को वीडिया कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह वृद्धि तेज करने के लिये 28-31 प्रतिशत की दर से कर्ज वितरण में वृद्धि की गई. उसके दुष्परिणाम आगे चलकर दिखने ही थे.

उन्होंने कहा, "यदि हम हर साल बैंक ऋण को 31 या 28 प्रतिशत बढ़ाकर आर्थिक वृद्धि तेज करने का तिकड़म कर रहे हैं तो इतिहास इससे निश्चित रूप से अंधाधुंध कर्ज बांटना ही कहेगा और इसका भविष्य में बुरे परिणाम दिखना स्वाभाविक है."

उन्होंने एनपीए की समस्या के लिए बैंकों को भी दोषी ठहराते हुए कहा कि उस समय कमजोर परियोजनाओं को ऋण दिये गए. इसके चलते उन ऋण खातों में समस्या पैदा हुई और बैंकों ने उसको नजरअंदाज किया और उन्हीं संकटग्रस्त खातों को बार-बार नये कर्ज देते रहे.

वित्त मंत्री ने इसे ढुलमुल बैंकिंग करार दिया. उन्होंने कहा कि इसी तरह की रणनीति के चलते एक दशक पहले जरूरत से ज्यादा क्षमताओं का सृजन हुआ और हमें ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां, कर्ज से स्थापित परियोजनाएं ऋण किस्त चुकाने की हालत में नहीं थी. उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ परियोजनाओं में धोखाधड़ी भी की गई.

उन्होंने कहा कि उससे भी बढ़कर दूसरी गलती यह हुई कि हमने ऋणों को नया करना शुरू किया और उसका परिणाम है कि अब हमें उनकी वसूली के लिये कोई सही रास्ता तलाशना पड़ रहा है.