सांस लेने में तकलीफ हाेने लगी तब कराई जांच इसलिए संक्रमण बेकाबू, नतीजा- माैत

काेराेना का संक्रमण कम हाेने के बाद भी लाेग इसके डर से बाहर नहीं निकल पाए हैं। जांच कराने में देरी और लापरवाही के कारण जानें जा रही हैं। दिसंबर के महज 20 दिन में शहर में काेराेना ने 22 लोगों की जान ले ली। मरने वाले अधिकांश लोग 56 साल से अधिक उम्र के थे।

इनमें से 60 फीसदी काेराेना के लक्षण आने के बाद भी जांच कराने देरी से अस्पताल पहुंचे। इस कारण उनके फेफडे़ 50 फीसदी से अधिक संक्रमित हाे गए और फिर संक्रमण पर काबू पाना असंभव हाे गया। मृतकाें में ज्यादातर काे ब्लडप्रेशर, डायबिटीज और सांस या किडनी संबंधी बीमारी थी, इसलिए उन्हें बचाया नहीं जा सका।

डाॅक्टर्स के मुताबिक, मृतकाें में 60 से 70 फीसदी मरीज ऐसे सामने आए हैं जो लक्षण आने के बाद भी जांच कराने के लिए 6 से 7 दिन बाद अाए। वह भी तब, जब उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। इस कारण संक्रमण फेफड़ों को 60 फीसदी तक संक्रमित कर चुका था। यही कारण है कि कई मरीजाें ने अस्पताल में भर्ती होने के 5 दिन के भीतर ही दम ताेड़ दिया।

डराने वाली हकीकत

1 से 20 नवंबर तक शहर में 1740 पॉजिटिव मरीज मिले थे और महज 20 मरीजों की मौत हुई थी। यानी मृत्युदर 1.14% तक सीमित
1 से 20 दिसंबर तक 1086 नए पॉजिटिव मरीज मिले, लेकिन 22 की मौत हो गई। यानी इस माह मृत्युदर 2.02% पर पहुंच गई
केस-1: भर्ती हुए ताे वेंटिलेटर पर रखा, तीन दिन में माैत

सिटी सेंटर में रहने वाले 76 वर्षीय शख्स काे क्रोनिक किडनी डिसीज थी। इसी दाैरान उन्हें कोरोना संक्रमण हो गया। 17 दिसंबर को उन्हें गंभीर हालत में सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया और महज तीन दिन के भीतर ही उनकी माैत हाे गई। डॉक्टर्स के मुताबिक इन्हें संक्रमण पहले से था। भर्ती होने से पहले ही उनके फेफड़े काफी संक्रमित हाे चुके थे। इससे प्रतीत हाेता है कि इन्हाेंने जांच कराने में देरी की।

केस-2: अस्पताल में भर्ती हाेने के पांच दिन में ही दम ताेड़ दिया

उपनगर ग्वालियर की रहने वाले 65 वर्षीय महिला को किडनी की बीमारी के साथ शरीर में खून की कमी थी। वह 16 दिसंबर की शाम काे अस्पताल पहुंचीं तो उन्हें ऑक्सीजन पर लेना पड़ा। इनके फेफड़े 95 फीसदी तक संक्रमित हाे चुके थे। इस कारण संक्रमण पर काबू पाना मुश्किल हाे गया। नतीजा- पांच दिन के अंदर इनकी मौत हो गई। डाॅक्टर्स के मुताबिक जांच और इलाज में देरी के कारण संक्रमण तेजी से बढ़ा। यदि समय रहते जांच होती तो इलाज संभव होता।

केस- 3: सीटी स्कैन कराया तो 95 फीसदी थे फेफड़े संक्रमित

माधौगंज की रहने वाली 62 वर्षीय महिला को किडनी के साथ शुगर और ब्लडप्रेशर की मरीज थीं। जब उनको सांस लेने में दिक्कत हुई तो सीटी स्कैन कराया जिसमें 95 फीसदी फेफड़े संक्रमित थे। इसके बाद उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया। यहां तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई। डॉक्टराें के मुताबिक शुरूआत में कोरोना के लक्षणों को सामान्य वायरल फीवर समझना सबसे गलती है जो ज्यादातर लोग कर रहे हैं और इससे संक्रमण बढ़ रहा है।

लोग खांसी और जुकाम काे भी गंभीरता से लें

जो लोग डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, किडनी और सांस संबंधी बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें कोरोना से बचाव रखना आवश्यक है। अगर हल्का बुखार, जुकाम और खांसी है तो वह विशेषज्ञ को दिखाकर कोरोना की जांच अवश्य कराएं। समय रहते कोविड होने का पता चल जाता है तो रोगी के ठीक होने की संभावना अधिक रहती है।

-डॉ. प्रदीप प्रजापति, एसो. प्रोफेसर, मेडिसिन, जीआरएमसी

जांच में देरी से हाे रहीं हैं संक्रमित बुजुर्गाें की माैत

काेराेना से अब जाे माैतें हाे रहीं हैं, उनमें ज्यादातर बुजुर्ग हैं और वे कहीं न कहीं जांच में देरी कर रहे हैं। इस कारण जब वे अस्पताल में भर्ती हाेते हैं ताे प्रारंभिक जांच में ही पता लग जाता है कि कोरोना उनके फेफड़ों काे काफी खराब कर चुका है। खासतौर पर वे मरीज जिन्हें पहले से कोई बीमारी हैंं।