घरों में रहो...ज्योति आज़ाद खत्री की गज़ल

बचा नहीं है कोई रास्ता , घरों में रहो
सभी से है ये मेरी इल्तिज़ा घरों में रहो

वबा के दिन हैं ये घर में रहो ख़ुदा के लिये
कि हो न जाये कहीं हादसा, घरों में रहो

ये जंग साँसों की है और जीतना है हमें
इलाज इसका है बस फ़ासला, घरों में रहो

ये पत्थरों का ज़माना नहीं है समझो तुम
दिखाओ ख़ुद को ज़रा आइना घरों में रहो

हमारी जान की कीमत नहीं है जान कोई
ये वक़्त दे रहा है मशविरा, घरों में रहो

हमारे वास्ते है जिनकी जान जोखिम में
बढ़ाओ उनका ज़रा हौसला घरों में रहो

-ज्योति आज़ाद खत्री

 

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