प्रसंगवश : कैबिनेट मंत्री और समाज का ये गटरवाद

भिष्टा,मल,शौच और लैट्रिन... उफ़्फ़ जहन में अजीब सी उबकाई सी मच गई। सुबह या शाम जब आप खुद घर के शौचालय ये दैनिक नित्य क्रिया से फ़ारिग होकर बाहर निकलते हैं तो साबुन से हाथ रगड़ रगड़ कर धोते है।
मेरी पहचान के बहुत से पूजा पाठ वाले घरों में तो शौच के बाद नहाना तक अनिवार्य है। वरना आपको अशुद्ध ही मान कर किसी गृहकार्य में शामिल नहीं होने दिया जाएगा। ये सब तब है जब आप अपने शरीर के मल का ही उत्सर्जन कर के आते है।
अब कभी विचार किया है कि आपका किया मल कोई अपने हाथों से उठाए और सिर पर डलिया में रखकर ले जाये। उस मल के भरे सीवर में सिर तक डूबकर उसे चॉक होने पर साफ़ करे। अब भी कई जगह हालत यही है।


दरअसल ये मामला प्रदेश के कैबिनेट मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का सीवर में कमर तक उतरकर उसे साफ़ करने पर मची बहस से जुड़ा है । आम आदमी और कई उनसे जुड़े लोग उनके सीवर साफ़ करने को सराह रहे है। जबकि एक वर्ग इसे नौटंकी कहकर सोशल मीडिया पर चटखारे भर रहा है।
मेरा निजी मत है कि चुनाव हो चुके, चार साल और बाक़ी है। अब ये नौटंकी की नौबत ऐन चुनाव के समय पर भी किसी नेता को पड़ती तो वो बिल्कुल नहीं करता। आख़िर गंदगी की सीवर में कमर तक डूबने के अलावा और भी रास्ते है नौटंकी के।
थोड़ा विषय से अलग चलते है। अक्सर सोचता था कपड़े धोने का काम बड़े बड़े अफ़सरों के बेटे ठेके पर कंपनी खोलकर करने लगे।
बाल काटने का काम कई संभ्रांत घरों के लड़के लड़कियाँ बतौर प्रोफ़ेशन कर के अपना करियर बना रहे है।
कपड़े सिलने का काम फ़ैशन डिजाइनिंग कहलाया जाने लगा और ये अपने आप में सबसे बूम पर जाने वाला करियर भी रहा।
मने कि जो जातिगत काम थे वो अब वो किसी जाति विशेष के नहीं बचे। हर वर्ग और जाति और समुदाय का व्यक्ति इसमें उतर रहा है।
... पर आपने गौर किया है कि सीवर साफ़ करने का काम या आपका मल और गटर साफ़ करने का काम एक जाति या वर्ग के ठेके पर ही क्यों है ? ये बेहद चिंता का विषय है। इस काम के लिेए कोई करियर नहीं बना और ना ही कोई पसंद से करना चाहता है। जाति विशेष या वर्ग विशेष के लोग जो आदि अनादि काल से यह करते आ रहे है या उनसे ही कराया जा रहा है। वे थोड़ा संपन्न या शिक्षित होने के बाद ये काम बिल्कुल नहीं करना चाहते है। तो भविष्य क्या है ? इस व्यवस्था का ज़िम्मा कैसे सँभाला जाएगा ?
ये काम सबसे महँगा होगा, जो कोई नहीं कर सकता एक दौर में उस काम को करने के लिेए आपको क़ीमत भी बहुत चुकानी होगी, क्योंकि ये आप और हम लाख परेशानी होने पर भी नहीं कर पाएँगे।
हमारे देश में समाज के सिस्टम को बदलने क लिेए मंत्री की यह कथित नौटंकी एक मिसाल के रुप में स्थापित हो गई है। खुद एक सामान्य वर्ग से है और अपने हाथों से मैला साफ़ करते है। इससे संदेश जाता है कि हमारी गंदगी हमें ही साफ़ करना होगी तभी व्यवस्था में सुधार आएगा।
वैसे भी मेरा शुरुआत से मानना रहा है कि नेता हो तो हर वर्ग और जाति और समुदाय का हो। किसी की ऐंठन तो किसी का लाव लश्कर तो किसी के कपड़ों का क्रीज टूटते नहीं दिखती। ऐसे में कोई एक ऐसा तो है जो समाज के हर तबके को अपनी बराबरी का और बीच का लगे। इसके लिेए नेता को अपना अहम त्यागना बहुत जरुरी है। जो नग्न है यानि वो हर घमंड व आवरण से ऊपर उठ चुका है। उसे मान अपमान और सम्मान की फिर कोई फ़िक्र नहीं होती। ये ग्वालियर चंबल के मेरी पीढ़ी के लोगों के लिए नए अंदाज़ की राजनीति है। जहां छद्मावरण की जरुरत महसूस नहीं है। जो है सामने है और निष्कर्ष के साथ है। आइए ऐसी ज़मीनी राजनीति का साथ दें और गंदगी दूर कर एक स्वस्थ शहर बनाएँ। जहां राजनीति ग्लैमर से ज़्यादा आम लोगों के काम से जुड़ी मानी जाएगी।

आपका- अर्पण राऊत

(वरिष्ठ पत्रकार ग्वालियर) 9425117464