महागठबंधन में राहुल गांधी ने क्यों डाले हथियार, तेजस्वी के नाम पर कैसे मानी कांग्रेस

यह सब उस होटल लॉबी में लगे एक पोस्टर से शुरू हुआ जहां, महागठबंधन की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी. चूंकि उस पोस्टर पर केवल तेजस्वी यादव की तस्वीर थी और ‘बिहार माँगे तेजस्वी सरकार’ का नारा लिखा था, इसलिए साफ था कि महागठबंधन का बाकी अभियान राजद का ही होगा. वीआईपी और सीपीआई जैसे अन्य सहयोगी दल भी यही चाहते थे. हालांकि, कांग्रेस चुप रही.

महागठबंधन की कहानी कांग्रेस की ताकत और गठबंधन में बड़ा भाई बनने की उसकी कोशिश से उसके सहयोगियों के नाखुश और नाराज होने की कहानी रही है. देश की सबसे पुरानी पार्टी को आखिरकार अपने सहयोगियों के दबाव में आकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और वीआईपी के नए चेहरे मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री घोषित करना पड़ा.

बिहार चुनावों ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कांग्रेस को इस कठोर सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि गठबंधन में रहते हुए अब वह कोई फैसला नहीं ले सकती. पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है और अंततः हारकर अपनी जमीन गंवानी पड़ी है. अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दोनों ने कांग्रेस पर ऐसे समय में एक खराब गठबंधन सहयोगी होने का आरोप लगाया, जब उसके पास अकेले चुनाव जीतने की क्षमता नहीं है.

बिहार चुनाव का बंगााल कनेक्शन

2026 के बंगाल चुनावों से पहले कांग्रेस को आरजी कर बलात्कार और संदेशखली हिंसा जैसे कई मुद्दों पर चुप रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है. यहां तक कि अधीर रंजन चौधरी को भी राज्य अध्यक्ष पद से हटा दिया गया क्योंकि ममता बनर्जी के उनसे मतभेद थे और पार्टी उन्हें अलग-थलग नहीं करना चाहती.

अरविंद केजरीवाल वाली घटना

अरविंद केजरीवाल की हार को कई INDIA ब्लॉक सहयोगियों ने कांग्रेस की भाजपा की मदद करने की साज़िश के तौर पर देखा. बिहार में राजद कोई चांस नहीं लेना चाहती थी और इसलिए उसने कांग्रेस को यह स्पष्ट कर दिया कि उसे थोड़ा शांत रहना होगा.लालू प्रसाद यादव ने मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से कहा कि वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को समझते हैं, लेकिन यह उनके बेटे तेजस्वी के लिए करो या मरो वाला चुनाव है.