पुलवामा हमला: शोक की शांति और आक्रोश के शोर में दब गए मोदी सरकार की जवाबदेही के जो सवाल

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद जहां विपक्ष चुनावी साल में सरकार पर हमला करने से बचता हुआ दिख रहा है. वहीं पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं. ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अहम मुद्दे पर सरकार की जवाबदेही तय करने को लेकर जो सवाल किए जाने चाहिए, वे शोक की शांति और आक्रोश के शोर में दबते हुए प्रतीत हो रहे हैं. पांच साल का कार्यकाल किसी सरकार की नीतियों का क्या प्रभाव पड़ा, यह जानने के लिए काफी है. लिहाजा इस बात का विश्लेषण जरूरी है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी सरकार की नीति से देश को क्या मिला?
साल 2016 में पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक की निगरानी करने वाले पूर्व नॉर्दर्न आर्मी कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीएस हुडा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है कि सीमा पार की गई एक कार्रवाई से कुछ नहीं बदला. पिछले 3-4 सालों में आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले स्थानीय युवकों की संख्या बढ़ी है. इसके साथ ही सुरक्षाबलों पर होने वाले हमलों में भी इजाफा हुआ है. हुडा ने कहा कि गत वर्ष हमने जितने जवान खोए हैं, वो पिछले दस साल में सबसे ज्यादा है.
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डीएस हूडा ने जिन बातों पर जोर दिया है उसके आंकड़ों पर ही नजर डालें तो पता चलेगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार की नीति कितनी सफल रही. आपको बता दें कि पुलवामा हमले को अंजाम देने वाला फिदायीन आदिल अहमद डार पुलवामा के ही काकपोरा का रहने वाला था. हाल के दिनों में यह देखा गया है कि सीमा पार बैठे आतंकी गुट स्थानीय युवकों को संसाधनों के जरिए मदद देकर सुरक्षाबलों पर हमले करवा रहे हैं.
आतंकी बनने वाले कश्मीरी युवकों की संख्या में इजाफा
जम्मू-कश्मीर के मल्टी एजेंसी सेंटर की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में आतंकी बनने वाले स्थानीय युवकों की संख्या सबसे ज्यादा रही. आंकड़ों के मुताबिक जून 2018 तक 82 कश्मीरी युवक विभिन्न आतंकी गुटों में शामिल हुए. जिसमें से हिजबुल-मुजाहिद्दीन में 38, लश्कर-ए-तैयबा में 18, जैश-ए-मोहम्मद में 19 युवक शामिल हुए. इसी तरह साल 2017 में 128, साल 2016 में 84, साल 2015 में 83 और साल 2014 में 63 स्थानीय युवक आतंकी गुटों में शामिल हुए. इस लिहाज से देखा जाए तो पिछले 5 साल में 440 कश्मीरी युवक आतंकी बने.
वहीं साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2014-2018 के दौरान कुल 876 आतंकी मारे गए. जबकि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के कार्यकाल में 4239 आतंकी मारे गए.