अब सीवेज की 100% सफाई मशीनों से, बजट 2023 में प्रस्ताव

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश कर दिया. वित्त मंत्री ने इस बजट की 7 प्रमुख प्राथमिकताएं गिनाईं और उन्हें सप्तऋषि की संज्ञा दी. इन 7 प्राथमिकताओं में शामिल हैं, समग्र विकास, अंतिम व्यक्ति या मील तक पहुंचना, इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश, क्षमता को उजागर करना, हरित विकास, युवा और वित्तीय क्षेत्र. अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के तहत निर्मला सीतारमण ने बताया कि मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा खत्म करने के उद्देश्य से सरकार ने सेप्टिक टैंक और सीवर की 100 फीसदी सफाई मशीनों से करने का लक्ष्य रखा है. देश के सभी शहरों और कस्बों में मैनहोल की सफाई अब मशीनों से होगी.

केंद्रीय वित्त मंत्री ने इसे ‘मैनहोल से मशीन होल’ के बदलाव के रूप में परिलक्षित किया. दिसंबर 2022 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा को सूचित किया था कि 2017 से 2022 तक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 400 से अधिक लोगों की मौत हुई. साल 2020 में, केंद्र सरकार ने मैला ढोने वालों और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन किया था. इसका उद्देश्य सीवर और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को अनिवार्य बनाना और ‘मैनहोल’ शब्द को आधिकारिक उपयोग में ‘मशीन-होल’ से बदलना था. इसके साथ ही इस अधिनियम के उल्लंघनों की रिपोर्ट करने के लिए 24×7 राष्ट्रीय हेल्पलाइन की भी व्यवस्था की गई थी.
वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह भी कहा कि सूखे और गीले कचरे को अलग करने पर जोर दिया जाएगा. इसके लिए साइंटिफिक मैनेजमेंट पर फोकस किया जाएगा. साल 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारत में हाथ से मैला ढोने और सीवेज की सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुनिया में कहीं भी लोगों को ‘गैस चैंबर’ में ‘मरने के लिए’ नहीं भेजा जाता है. इस संबंध में आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने दिसंबर 2022 में शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार से 4 सवाल किए थे… 1. हाथ से मैला ढोने के काम में शामिल व्यक्तियों की संख्या कितनी है?, 2. जाति-आधारित अलग-अलग ब्योरा दें, 3. मैला उठाने वालों के ​आर्थिक उद्धार के लिए सरकार ने कौन-से कदम उठाए हैं?, 4. इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए सरकार ने अब तब क्या-क्या प्रयास किए हैं?

मैला ढोने वालों में से 97 फीसदी दलित
इस सवाल के जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने संसद में बताया था, ‘देश में कुल 58,098 लोग हाथ से मैला साफ करने के काम में लगे हुए हैं. कानून के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान के लिए जाति के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन फिर भी अधिनियम के प्रावधानों के तहत सर्वेक्षण कराए गए हैं. इनमें से 43,797 लोगों की ही जातिगत पहचान हुई है. 43,797 लोगों में से 42,594 लोग एससी यानी अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं. इसके अलावा 421 लोग आदिवासी, जबकि 431 लोग ओबीसी समुदाय से हैं. इनके अलावा 351 अन्य वर्गों के लोग शामिल हैं.’ इस कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष कर रही संस्था ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ का दावा है कि देश में अभी भी 26 लाख ड्राई शौचालय हैं, जिनकी सफाई का जिम्मा मैनुअल स्कैवेंजरों पर है.