पदोन्नति में आरक्षण का मामला-हाईकोर्ट के जिस फैसले को आधार बनाकर प्रमोशन रोके गये, उसमें सिर्फ रिजर्वेशन रोस्टर पर रोक लगाई गयी, बाकी प्रमोशन हो सकते हैं

भोपाल. मप्र में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति 5 साल रूकी हुई है। लेकिन अब इसके दोबारा शुरू होने का रास्ता निकल सकता है। हाल ही में सरकार ने महाविधवक्ता के अभिमत के बाद स्पष्ट हुई स्थिति को आधार बनाते हुए ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता निकाला है। इसी फैसले को मद्देनजर रखकर और पदोन्नति नियम 2002 की आधार बनाते हुए कर्मचारी प्रमोशन देने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, हाईकोर्ट के 30 अप्रैल 2016 के किस फैसले को आधार बनाते हुए पदोन्नतियां रोकी गयी, वह सिर्फ पदोन्नति नियम 2002 के रिजर्वेशन रोस्टर तक सीमित है। बाकी पदोन्नति अभी भी यथावत है।

मप्र के पूर्व महाधिवक्ता रविनंदन सिंह का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले को शब्दशः व्याख्या नहीं होने के चलते पदोन्नतियां रोकी गयी। उस फैसले के पैरा 27 में स्पष्ट है कि पदोन्नति नियम में रिजर्वेशन बैकलॉग रिक्तियों को कैरीफॉवर्ड करना एवं रोस्टर के ऑपरेशन के प्रावधान संविधान के विरूद्ध है। बाकी नियम के जरिये पदोन्नतियां की जा सकी है। सरकार यदि इस मामले में भी महाविधवक्ता के अभिमत का रास्ता निकले तो 5 वर्ष से रूकी पदोन्नतियां दोबारा शुरू हो सकती है। आपको बता दें कि प्रमोशन पर रोक के चलते बीते पांच साल में एक लाख से अधिक अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए रिटायर हो गये। पदोन्नति शुरू नहीं हुई तो हर साल 7 से 8हजार कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर होते रहेंगे।

पांच साल से रोक होने के चलते एक लाख से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के हो गये सेवानिवृत्त

हाल ही में सरकार ने महाधिवक्ता के अभिमत लेकर ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया है। उसने कहा है कि हाईकोर्ट ने 3 विभागों से संबंधित 6 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुूए 27 प्रतिशत आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाई है। ऐसे में यह रोक सिर्फ 3 विभागों की 6 याचिकाओं से संबंधित है। न कि सभी विभागों की। इसलिये इन्हें छोड़ बाकी ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। सरकार को यह फैसला लेने में इसलिये भी देरी हुई, क्योंकि 19 माह पूर्व बनाये गये कानून के बारे में स्थिति स्पष्ट नही थी। इस बारे में जब महाधिवक्ता से अभिमत लिया गया तो उन्होंने बीच का रास्ता निकाला है। कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता भी ऐसे ही निकल सकता है। क्योंकि हाईकोर्ट ने सिर्फ रिजर्वेशन रोस्टर पर रोक लगाई है न कि पदोन्नति नियमों पर । इस लिहाज से भर्ती के आधार पर सभी वर्गो के कर्मचारियों को मैरिट ककम सीनियॉरिटी के आधार पर प्रमोशन दिया जा सकता है।

संपूर्ण पदोन्नति नियम नहीं हुए अल्ट्रावायरस

मप्र लोक सेवा(पदोन्नति नियम) 2002 अभी अस्तित्व में है। 30 अप्रैल 2016 को तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानबिलकर और जस्टिस संजय यादव की खण्डपीठ ने पूरे पदोन्नति नियम को अल्ट्रावायरस घोषित नहीं किया था। कोर्ट ने सिर्फ इस नियम के रिजर्वेशन प्रावधानों पर रोक लगाई थी जिसे मप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सिविल अपील क्रमांक 1632/2016 लगाई है। इस पर 14 सितम्बर को सुनवाई होनी है।

पदोन्नति रूकने से प्रशासनिक दक्षता प्रभावित

प्रदेश में 5 सालों से कर्मचारियों की पदोन्नति रूकी हुई है। इससे प्रशासनिक दक्षता प्रभावित हुई है। वर्तमान में जो पदोन्नति नियम है। उनके हिसाब से कर्मचारियों के प्रमोशनका रास्ता निकाला जा सकता है।
केएस शर्मा, पूर्व मुख्यसचिव, मप्र