भारत-नेपाल के विवाद में अब कूदा पाकिस्तान

भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद में अब पाकिस्तान भी कूद पड़ा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के पड़ोसी देशों के बहाने मोदी सरकार पर निशाना साधा और एक बार फिर कश्मीर राग अलापा. पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने लिखा, हिंदुत्व सुप्रेमेसिस्ट मोदी सरकार की अहंकार से पूर्ण विस्तारवादी नीतियों के साथ भारत पड़ोसी देशों के लिए खतरा बन गया है. बांग्लादेश को नागरिकता संशोधन कानून के जरिए और नेपाल-चीन के लिए सीमा विवाद से भारत खतरा पेश कर रहा है. वहीं, पाकिस्तान के खिलाफ भारत झूठे फ्लैग ऑपरेशन चलाकर मुश्किलें पैदा कर रहा है. 

इमरान खान ने नेपाल के बहाने कश्मीर का रोना भी रोया. इमरान ने आगे लिखा, "और भारत ये सब कश्मीर पर अवैध कब्जे, जेनेवा संधि के तहत युद्ध अपराध को अंजाम देने और पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर पर दावा पेश करने के बाद कर रहा है."

इमरान खान ने आगे लिखा, "मैंने हमेशा से कहा है कि मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने वाली फासीवादी मोदी सरकार केवल भारतीय अल्पसंख्यकों के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी खतरा है." इमरान खान के इस ट्वीट पर भारतीय भी खूब प्रतिक्रिया दे रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, भारत चीन के लिए खतरा हो गया है! ये सुनकर गर्व महसूस हो रहा है. वहीं, एक अन्य यूजर ने कहा कि नेपाली और बांग्लादेशी पाकिस्तान में काम करना क्यों पसंद नहीं करते हैं, वे सभी अपनी आजीविका के लिए भारत आते हैं, आपकी सारी कोशिशें बेकार जाएंगी.

दरअसल 8 मई को भारत ने लिपुलेख से होकर गुजरने वाली कैलाश मानसरोवर लिंक रोड का उद्घाटन किया था जिसको लेकर नेपाल ने विरोध दर्ज कराया था. नेपाल उत्तराखंड के लिपुलेख कालापानी, और लिम्पियाधुरा पर अपना दावा पेश करता है और उसने इन तीनों क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक नया नक्शा भी जारी किया है.

भारत ने नेपाल की आपत्ति के जवाब में कहा था कि सड़क निर्माण भारतीय क्षेत्र में ही हुआ है लेकिन नेपाल से करीबी संबंध को देखते हुए वह इस मुद्दे को कूटनीतिक तरीकों से सुलझाने का समर्थन करता है. भारत ने ये भी कहा था कि कोरोना वायरस से दोनों देश सफलतापूर्वक निपट लें और उसके बाद सीमा विवाद पर वार्ता की जाएगी. हालांकि, नेपाल ने कहा था कि वह वार्ता के लिए कोरोना त्रासदी के खत्म होने का इंतजार नहीं कर सकता है.

नेपाल का कहना है कि सुगौली समझौते (1816) के तहत काली नदी के पूर्व का इलाका, लिंपियादुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का है. सुगौली संधि साल 1816 में नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुए एक युद्ध में हार के बाद नेपाल को अपना काफी हिस्सा गंवाना पड़ा. युद्ध खत्म होने के बाद सुगौली संधि पर कंपनी की तरफ से पैरिश ब्रैडशॉ और नेपाल की तरफ से राज गुरु गजराज ने हस्ताक्षर किए और इसी के आधार पर ब्रिटिश भारत और नेपाल की सीमारेखा तय हुई. इस संधि में नेपाल की महाकाली नदी को दोनों देशों के बीच सीमा का आधार बनाया गया. हालांकि, पिछले 200 सालों में नदी ने कई बार अपना रास्ता बदला जिसकी वजह से सीमा विवाद भी गहरा गया है.

सेना प्रमुख के बयान पर नेपाल के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने मंगलवार को कहा कि भारतीय सेना प्रमुख के बयान से नेपाली गोरखाओं की भावनाएं आहत हुई हैं जो लंबे समय से भारत के लिए बलिदान करते आए हैं. नेपाल के रक्षा मंत्री ने कहा कि जनरल मनोज नरवणे का कूटनीतिक विवाद में चीन की तरफ इशारा करना निंदनीय है. उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ती है तो नेपाली सेना लड़ाई भी करेगी.