हिडमा की मौत नक्सल मूवमेंट सफाया की ओर, हिडमा 5वीं पास, 5 फीट 5इंच का कद और 20 हमलों का मास्टरमाइंड

नई दिल्ली. घने जंगल, कड़ी निगरानी और 34 घंटे की सांस रोक देने वाली कार्यवाही। आखिरकार वह दिन आ ही गया। जिसका सुरक्षा एजेंसियों को एक दशक से इंतजार कर रही थी। माओवादियों की पहली बटालियन का सबसे खौफनाक चेहरा, 1 करोड़ रूपये का इनामी माडवी हिडमा आंध्रप्रदेश के मारेदुमिल्ली के जंगल में एक भीषण एनकाउंटर में मारा गया है। उसे झीरम घाटी से लेकर ताड़मेटला जैसे नरसंहारों का मास्टरमाइंड था। वह सुकमा -दंतेवाड़ा बेल्ट का सबसे हिंसक कमांडर माना जाता था। हिडमा की मौत न केवल एक ऑपरेशन की कामयाबी है, बल्कि उन इलाकों के लिये भी बड़ी राहत है जो दशकों से नक्सली हिंसा के साये में जी रहे थे। यह महज एनकाउंटर नहीं, बल्कि भारत की सबसे मुश्किल एंटी-नक्सल वॉर में से एक था।
कौन था हिडमा
हिडमा महज 5वीं कक्षा तक पढाई की थी। उसका कद 5 फीट 5 इंजच था। वह 20 बड़ें नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड था। 51 वर्षीय हिडमा नक्सलियों के सबसे खतरनाक चेहरों में से एक था। वह छत्तीसगढ, तेलंगाना और महाराष्ट्र और आंधप्रदेश के जंगलों में घूमकर सुरक्षाबलों पर हमला करता था। उस पर दर्जनों जवानों की हत्या का आरोप था। वह नक्सलियों की बटालियन का कमांडर था। उस पर 45 लाख रूपये का इनाम घोषित था। 25 मई 2013 की झीरम घाटी की दर्दनाक वारदात का भी मास्टर माइंड वहीं था। जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं समेत 33 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
16 वर्ष की आयु में बना था नक्सली
हिडमा महज 16 वर्ष की आयु में नक्सली संगठन में शामिल हुआ था। वह गोंड समाज से ताल्लुक रखता था। माओवादी गतिविधियों में आने से पूर्व उसकी शादी हो चुकी थी। पतले-दुबले, पर बेहद फुर्तीले और तेज दिमाग वाले हिडमा को संगठन ने जल्दी ही अपना लिया। वह चीजें तेजी से सीखता था। जल्द ही नक्सली नेताओं का भरोसेमंद चेहरा बन गया था। नक्सलियों के पास अपना एज्यूकेशन और कल्चरल कमेटी सिस्टम होता है। जहां नये भर्ती युवाओं को पढ़ाया जाता है। गाना-बजाना सिखया जाता है। संगठन की वैचारिक ट्रेनिंग दी जाती है। हिडमा भी इसी प्रक्रिया से गुजरा था। कमांडरों ने उसे सरकारी तंत्र के खिलाफ भड़काया और समय के साथ उसका ब्रेनवॉश इतना गहरा हुआ कि बेहद हिंसक और निर्दयी नेता के रूप् में उभरकर सामने आया।
125 गांवों मैपिंग
कुख्यात हिडमा की तलाश आसान नहीं थी। सुरक्षाबलों ने आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा से सटे 125 से अधिक गांवों की थर्मल और टेक्नीकल मैपिंग कराई। बीजापुर-सुकमा बॉर्डर उसका मूल इलाका माना जाता था। एनटीआरओ की मदद से उसकी मूवमेंट को पकड़ने की कोशिश जारी थी। सुरक्षा एजेंसियां मान रही थी कि हिडमा का खात्मा छत्तीसगढ़ में नक्सलिज्म का निर्णायक झटका देगा।
34 घंटे की निरतंर मॉनीटरिंग
मंगलवार की सुबह लगभग 6 बजे शुरू किया गया एनकाउंटर 34 घंटे की लगातार मॉनिटरिंग का परिणाम थी। सुरक्षा एजेंसियों ने हिडमा की हर गतिविधि, हर ठिकाने और संभावित रूट को मैप किया। टीमों को जंगल की संरचना और संभावित एग्जिट रूट को देखते हुए पोजिशन में रखा गया ताकि वह बचकर न निकल सकें। मंगलवार की सुबह जिस मुठभेड़ सूबह जिस मुठभेड़ में हिडमा ढेर हुआ, वह कई दिनों की खुफिया निगरानी का परिणाम था। आंध्रप्रदेश पुलिस ने लगातार साइलेंट मूवमेंट और इटेलीजेंस की सहायता से उसकी लोकेशन ट्रैक की। इस एनकाउंटर की उसकी पत्नी मदकम राजे और 4 अन्य नक्सली भी मारे गये। यह ऑपरेशन बेहद रणनीतिक तरीके से प्लान किया गया था।
हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद
मुठभेड़ खत्म होने के बाद मौके से दो AK-47, एक पिस्तौल, एक रिवॉल्वर, एक सिंगल बोर हथियार और भारी संख्या में गोलियां मिलीं । किट बैग और कई अहम दस्तावेज भी बरामद किए गए। शुरुआती पहचान में ही पता चल गया कि मारे गए नक्सलियों में वह कमांडर भी है, जिसे माओवादी संरचना की रीढ़ माना जाता था। इसी ऑपरेशन के समानांतर विजयवाड़ा, एनटीआर, कृष्णा और काकीनाडा में भी पुलिस ने कार्रवाई की।  कुल 31 संदिग्ध माओवादी पकड़े गए।  इनमें नौ लोग देवजी के सिक्योरिटी गार्ड बताए जा रहे हैं, जबकि बाकी साउथ बस्तर जोनल कमेटी से जुड़े थे। यह साफ संकेत है कि माओवादी नेटवर्क दक्षिण में अपने पुराने नेटवर्क को फिर खड़ा करने की कोशिश में था, लेकिन वो कामयाब ना हो सका।