हाईकोर्ट बार एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष अनिल मिश्रा पर की गयी FIR

ग्वालियर. हाईकोर्ट बार एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष अनिल मिश्रा के खिलाफ पुलिस ने क्राइम ब्रांच थाने में एफआईआर दर्ज की है। पूर्व अध्यक्ष ने रविवार 5 अक्टूबर को पत्रकारों से चर्चा करते हुए ओबीसी संगठन के बयान पर प्रतिक्रिया मांगने पर अम्बेडकर के खिलाफ 2.4 मिनट का आपत्तिजनक बयान दिया था। क्राइम ब्रांच थाने ने रविवार को मिश्रा को नोटिस जारी किया था। स्पष्टीकरण निर्धारित अवधि में न मिलने पर प्रकरण दर्ज कर लिया है। क्राइम ब्रांच ने मिश्रा के खिलाफ भड़काऊ बयान देने पर प्रकरण दर्ज किया है।
क्या है बयान
उन्हों‌ने बयान में कहा कि मैं अंबेडकर को नहीं मानता मेरी मान्यता है और मैंने जितना पढ़ा है अंबेडकर कहीं कुछ नहीं है, अंबेडकर झूठे व्यक्तित्व का नाम है। अंबेडकर अंग्रेजों के एजेंट थे और जिसे किसी को भी बात करनी हो दस्तावेज के साथ बैठे बात करे। कोई सिद्ध कर देगा कि संविधान में अंबेडकर का कोई योगदान था तो मैं उनकी मान्यता को मान लूंगा। अंबेडकर को संविधान निर्माता लिखे जाने पर मिश्रा ने कहा कि किसी भी किताब और संविधान में यह नहीं लिखा गया। यह शब्द मर्जी से लोग लिख रहे हैं, यह देन है नेताओं की जो वोट के लिए जनता को भ्रमित कर रहे हैं। उन्होंने बयान में कहा कि जो असली संविधान निर्माता है स्व. बीएन राव उन्हें हम स्थापित करेंगे।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ओबीसी महासभा के नेताओं द्वारा जिनमें वकील भी हैं द्वारा अंबेडकर विरोधियों को राष्ट्रद्रोही का दर्ज दिए जाने की प्रतिक्रिया पर अभिभाषक अनिल मिश्रा से बयान लिया था। इस बयान में अभिभाषक अनिल मिश्रा ने अंबेडकर व राष्ट्रद्रोही की टिप्पणी करने वालों पर को कानून व संविधान के संबंध में ज्ञान व जानकारी न होने की बात कही थी।
प्रशासन ने 17-18 नेताओं के दबाव में टेके घुटने
रक्षक मोर्चा के संयोजन अमित दुबे ने कहा है कि रक्षक मोर्चा के संरक्षक अभिभाषक अनिल मिश्रा पर दर्ज की FIR  प्रशासन के जातिगत भेदभाव करने को दर्शाता है। यह FIR  अनुसूचित जाति जनजाति एवं ओबीसी महासभा के 17-18 नेताओं के दबाव के सामने प्रशपासन ने घुटने टेक कर की है। उन्होंने कहा हैकि दर्शाता है कि मप्र शासन किस तरह कुछ जातिगत एवं दंगाई अपराधी नताओं के इशारों पर काम कर रहा है। रक्षक मोर्चा ने इस कार्यवाही को संविधान के विपरीत बताते हुए समानता के अधिकारों का हनन बताया है। इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक काला अध्याय बताया है।