नेपाल के पीएम ओली बोले, कोई भी कीमत हो, अपनी जमीन लेकर रहेंगे

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने मंगलवार को कहा कि कालापानी-लिपुलेख और लिम्पियाधुरा नेपाल-भारत-चीन के ट्राइजंक्शन में हैं और इन्हें नेपाल के नक्शे में किसी भी कीमत पर शामिल किया जाएगा. बता दें कि 8 मई को भारत ने लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया था जिसे लेकर नेपाल ने ऐतराज जताया था. नेपाल उत्तराखंड के लिपुलेख कालापानी, और लिम्पियाधुरा पर अपना दावा पेश करता है और अब उसने एक नया नक्शा तैयार किया है जिसमें इन तीनों क्षेत्रों को शामिल किया गया है.

नेपाल के नए नक्शे को सोमवार को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा, "अब हम इन इलाकों को कूटनीति के जरिए पाने की कोशिश करेंगे, अब यह मुद्दा और शांत नहीं होगा, अगर हमारे इस कदम से कोई नाराज होता है तो हो, हमें इसकी चिंता नहीं है. हम अपनी जमीन पर किसी भी कीमत पर अपना दावा पेश करेंगे."

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने ये बयान संसद में दिया. दो महीने पहले किडनी रि-ट्रांसप्लांट करवाने के बाद ओली का संसद में ये पहला भाषण था. नेपाल की संसद के स्पीकर अग्नि सप्कोता ने उनकी तबीयत को देखते हुए उन्हें बैठकर ही भाषण देने के लिए कहा.

ओली ने भारतीय सेना प्रमुख मनोज नरवणे के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी. नरवणे ने कहा था कि लिपुलेख को लेकर नेपाल किसी और के इशारे पर विरोध कर रहा है. ओली ने कहा, हम जो कुछ भी करते हैं, अपने मन से करते हैं.

ओली ने कहा कि वह भारत के साथ मधुर संबंध चाहते हैं लेकिन वह पूछना चाहते हैं कि वे सत्यमेव जयते मानते हैं या सिंहमेव जयते. ओली का ये तंज भारत की सैन्य ताकत को लेकर था. नेपाल के पीएम ने आगे कहा, ऐतिहासिक गलतफहमियों को खत्म करने का विचार भारत के साथ दोस्ती गहरी करने के लिए ही है. इस मुद्दे पर चीन के साथ भी बातचीत हो रही है और नेपाल ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है.

ओली की कम्युनिस्ट पार्टी की चीन से ज्यादा करीबी रही है. कुछ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि इस महीने जब ओली की पार्टी के भीतर बगावत हुई थी तो चीनी राजदूत होउ यंकी ने उनकी कुर्सी बचाने में मदद की. ओली ने इस आरोप पर कहा, कुछ लोग कहते हैं कि एक विदेशी राजदूत ने मेरी सरकार गिरने से बचा ली...ये नेपाल के लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है और कोई मुझे बाहर नहीं फेंक सकता है.

नेपाल के विदेश मंत्रालय ने लिपुलेख में रोड लिंक खुलने के एक दिन बाद ही बयान जारी कर विरोध दर्ज कराया था और भारतीय राजदूत विनय कुमार क्वात्ररा को डिप्लोमैटिक नोट भी सौंपा था. भारत ने जवाब में कहा कि सड़क निर्माण भारतीय क्षेत्र में ही हुआ है लेकिन नेपाल से करीबी संबंध को देखते हुए वह इस मुद्दे कूटनीतिक तरीकों से सुलझाने का समर्थन करता है. भारत ने ये भी कहा था कि कोरोना वायरस से दोनों देश सफलतापूर्वक निपट लें और उसके बाद सीमा विवाद पर वार्ता की जाएगी. हालांकि, नेपाल जल्द से जल्द वार्ता चाहता है.