मध्य प्रदेश: होटल में विधायक और सांसत में कमलनाथ सरकार

मध्य प्रदेश में मंगलवार रात को उस वक्त सरकार पर खतरा मंडराने लगा जब 10 विधायकों के बीजेपी खेमे में जाने की बात आई लेकिन बुधवार को उनके लिए राहत की खबर यह आई कि बस चार विधायक ही बाहर हैं. बाकी सब लौट गए हैं और लौटने वाले विधायकों ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से जाकर मुलाकात की.

सरकार को अस्थिर करने के मकसद से विधायकों की खरीद-फरोख्त की साजिश भले ही कामयाब न हुई हो और कांग्रेस को राहत मिल गई हो, मगर अभी इस पर से पर्दा उठना बाकी है कि आखिर इस साजिश के पीछे कौन है. सत्तापक्ष कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस पूरे मामले के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. कांग्रेस आरोप लगा रही है बीजेपी ने कमलनाथ सरकार को गिराने की साजिश रची, जिसे वक्त रहते नाकाम कर दिया गया.

कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस का आरोप है कि उसके 8 विधायकों को बीजेपी जबरन ले गई. इनमें से एक बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) विधायक राम बाई भी थीं जिनको मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के दो-दो मंत्रियों जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह ने होटल से निकाला. इस दौरान सादे कपड़ों में हरियाणा पुलिस के अधिकारी से हाथापाई की नौबत भी आ गई.

मंगलवार की रात कमलनाथ की नींद तब उड़ गई जब उनकी सरकार को झटका देने के लिए दस विधायक बीजेपी के संपर्क में आ गए. कमलनाथ के सामने चुनौती ये थी कि कैसे बीजेपी के ऑपरेशन कमल को नाकाम करें. इन विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिशों पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बीजेपी पर बेहद संगीन आरोप मढ़ दिया.

 कर्नाटक शिफ्ट हुए विधायक?

बीजेपी के संपर्क में चले गए विधायकों में 6 कांग्रेस के, दो बीएसपी के, एक निर्दलीय और एक समाजवादी पार्टी के हैं. कांग्रेस का दावा है कि 6 विधायक उनके पाले में आ गए हैं. यानी बच गए चार जिनमें 3 कांग्रेस के और एक निर्दलीय विधायक हैं. इनके बारे में कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी ने बंधक बना रखा है.

खबर ये भी है कि कुछ विधायकों को कर्नाटक में शिफ्ट कर दिया गया है, जहां बीजेपी की सरकार है. मध्य प्रदेश में यह सियासी उठापटक क्यों है, इसे जानने के लिए मध्य प्रदेश विधानसभा का समीकरण समझना जरूरी है.

विधानसभा में विधायकों की संख्या 230 है. इनमें दो विधायकों की मौत के कारण इस वक्त 228 सदस्यों वाली विधानसभा है जिसमें बहुमत के लिए 115 विधायक चाहिए. कांग्रेस के पास इस वक्त 114 विधायक हैं जबकि बीएसपी के दो, समाजवादी पार्टी का एक और 4 निर्दयील विधायकों का समर्थन है. यानी कुल 121 सदस्य हैं. अगर इनमें से 4 विधायकों को कम भी कर दें तो कमलनाथ सरकार के पास 117 विधायक बचते हैं यानी बहुमत का आंकड़ा कायम रहेगा.

सरकार गिराने की बात

वैसे कमलनाथ सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी के प्रदेश स्तर के नेता सरकार गिराने की बात करते रहे हैं. नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने 24 जुलाई को विधानसभा में कहा था कि 'हमारे ऊपर वाले नंबर एक या दो का आदेश हुआ तो 24 घंटे भी आपकी (कमलनाथ) सरकार नहीं चलेगी.'

अब सवाल है कि इस वक्त कांग्रेस पर मंडराते इस सियासत के पीछे कौन से कारण काम कर रहे हैं. क्या बीजेपी जोड़ तोड़ से मध्य प्रदेश में सत्ता में आना चाहती है? क्या राज्यसभा चुनाव का मामला है जिसमें कांग्रेस अपनी मौजूदा ताकत से दो लोगों को राज्यसभा में भेज सकती है? क्या कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई ही कमलनाथ सरकार को स्थिर कर रही है?

कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई

कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई को आप इस बात से समझ सकते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले महीने अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की धमकी दे दी थी. इस पर कमलनाथ का जवाब ये बताने के लिए काफी था कि सिंधिया की धमकियों की कोई क्षमता वे नहीं देखते.

बीजेपी माफिया के साथ मिलकर प्रदेश कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने का असफल प्रयास पिछले कई दिनों से कर रही है. राज्य में ये सभी माफिया बीजेपी के संरक्षण में पिछले 15 साल में पनपे हैं. इसी के साथ कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक ट्वीट में बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि सविंधान को रौंदना बीजेपी का चरित्र बन गया है. जहां जोड़ से बात नहीं बनती वहां तोड़ अपनाने लगते हैं. यह बात हजम नहीं होती कि जनता ने सत्ता से दूर रहने का आदेश दिया है. मध्य प्रदेश में जनादेश के अपहरण का भाजपाई षड्यंत्र कभी सफल नहीं होगा. सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं.

 कांग्रेस के इस हमले का बीजेपी ने भी जवाब दिया. बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा का कहना है कि इस घटनाक्रम से बीजेपी का कोई लेनादेना नहीं है. ये सब कांग्रेस के अंर्तकलह का नतीजा है और इसका जवाब मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया दें. वर्तमान की सरकार ब्लैकमेल सरकार है जो जोड़तोड़ से बनी थी.