लोकसभा चुनाव: गठबंधन पर गोल-मोल, ये कांग्रेस का कन्फ्यूजन है या कॉन्फिडेंस?

2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट होकर जंग का ऐलान करने वाले विपक्षी दल बार-बार एक मंच पर आने के बावजूद मैदान-ए जंग में अलग-अलग खड़े नजर आ रहे हैं. जो कांग्रेस मोदी सरकार पर तानाशाही और लोकतंत्र खत्म करने के आरोप लगाते हुए महीनों से सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास कर रही थी. आज उसी को महागठबंधन की परिधि से बाहर किया जा रहा है या फिर क्षेत्रीय दल उसे अपनी शर्तों पर साथ रख रहे हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि यूपी, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे अहम राज्यों में कांग्रेस अकेले पड़ गई है, जबकि बिहार में आरजेडी कांग्रेस को उसकी मांग के मुताबिक सीट न देकर उसकी लिमिट का एहसास करा रही है. इस सियासी खिचड़ी के बाच अब कुछ दल कांग्रेस को कन्फ्यूज भी बताने लगे हैं, ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई कांग्रेस भ्रम में है या उसे फ्रंट फुट पर खेलते हुए अच्छे प्रदर्शन का कॉन्फिडेंस है.

सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन से कांग्रेस को आउट कर पहले ही बड़ा झटका दे दिया था, जिसके बाद कांग्रेस द्वारा सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़ने के ऐलान पर 18 मार्च को बसपा सुप्रीमो मायावती ने ये कह दिया कि कांग्रेस भ्रम न फैलाए. मायावती ने सख्त अंदाज में कांग्रेस को चेताते हुए साफ किया कि कांग्रेस से उनका न तो कोई गठबंधन है और न ही कोई तालमेल है. मायावती के इस रुख का समर्थन करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को नसीहत देने में देर नहीं लगाई और कह दिया कि सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को हराने में सक्षम है, इसलिए कांग्रेस कोई कन्फ्यूजन न पैदा करे. अब दिल्ली से भी ऐसी ही आवाजें आने लगी हैं.