मोदी सरकार का महिला आरक्षण बिल UPA के विधेयक से कितना अलग

नई दिल्ली. एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की सरकार ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण विधेयक (Women’s Reservation Bill) को मंजूरी दे दी है. इसे बुधवार को संसद के विशेष सत्र में पारित करने के लिए लाने की तैयारी है. इसका मतलब है कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों का आरक्षण हो सकता है. विधेयक के संसद के दोनों सदनों में आसानी से पारित होने की उम्मीद है. इसको कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है, जो वास्तव में विशेष सत्र में इस कानून को पारित करने के लिए मोदी सरकार पर दबाव डाल रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए भी यह बड़ा बदलाव हो सकता है.


लेकिन क्या मोदी सरकार का महिला आरक्षण विधेयक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के बिल के मसौदे से कहीं अधिक आगे और व्यापक प्रावधानों वाला होगा, जिसे 2010 में राज्यसभा से पारित किया गया था? ऐसा माना जाता है कि मोदी सरकार 2010 के विधेयक को वापस ले सकती है क्योंकि यह अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और संसद के इस सत्र में एक नया विधेयक पेश करेगी. हालांकि बिल का अंतिम मसौदा सार्वजनिक होने के बाद ही चीजें साफ होंगी. लेकिन यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार राज्यसभा और विधान परिषदों को भी इसके दायरे में लाने का लक्ष्य रख सकती है. जबकि यूपीए का बिल केवल लोकसभा और विधानसभाओं को कवर करता था.

इसके साथ ही नए बिल का लक्ष्य ओबीसी समुदाय को महिला आरक्षण के दायरे में लाने का हो सकता है. यूपीए के बिल में कहा गया था कि एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. हालांकि सपा और राजद जैसी पार्टियां इस बात पर जोर देती रही हैं कि इसी आरक्षण में ओबीसी को भी शामिल किया जाना चाहिए. यह देखना रोचक होगा कि क्या मोदी सरकार ने उन्हें शामिल किया है. मोदी सरकार से यह दावा करने की उम्मीद की जाती है कि वह यूपीए की तुलना में अधिक व्यापक विधेयक लेकर आई है. जबकि यूपीए राज्य सभा में विधेयक पारित कराने में सक्षम थी, वह लोकसभा में कानून पेश करने में भी विफल रही थी. उसे अपने सहयोगियों और यहां तक कि कांग्रेस के भीतर के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा था.

साबित होगा पीएम मोदी की विरासत
मोदी सरकार यह तर्क देगी कि उसने सभी राजनीतिक दलों से परामर्श किया है और बिल को कहीं अधिक आम सहमति के साथ लाया है. सभी राजनीतिक दलों ने सरकार से वर्तमान विशेष सत्र में ही बिल पेश करने के लिए कहा है. इसलिए, यह विधेयक भारतीय राजनीति में सबसे ऊंचे स्तर पर महिलाओं के महत्व को मान्यता देने में पीएम नरेंद्र मोदी की विरासत साबित हो सकता है. संसद के विशेष सत्र के शुरू होने से पहले दिन में पीएम मोदी ने कहा था कि इस सत्र में ऐतिहासिक फैसले होंगे. अपने भाषण के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं ने संसद में योगदान दिया था और कुल मिलाकर 7,500 से अधिक सदस्यों में से लगभग 600 महिला सांसद संसद के दोनों सदनों की सदस्य थीं. मौजूदा वक्त में कुल लोकसभा सांसदों में लगभग 15 फीसदी महिलाएं हैं, जो निचले सदन में महिलाओं का अब तक का सबसे अधिक अनुपात है.