किसान कर्जमाफीः वोटों की फसल के लिए कटेगी आम आदमी की जेब

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकार को कर्ज माफी की पूरी रकम अपने बजट से निकालनी पड़ी. इस रकम के लिए उत्तर प्रदेश को विकास के काम को एक-तिहाई कम करना पड़ा वहीं महाराष्ट्र सरकार को अपना खर्च निकालने के लिए शिरडी के मंदिर से कम दर पर कर्ज लेना पड़ा.

लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन गई है. इन चुनावों में कांग्रेस की जीत का बड़ा कारण किसानों से कर्ज माफी का वादा माना जा रहा है. इस जीत के बाद एक बार फिर कई राज्य किसानों की कर्ज-माफी का ऐलान कर रहे हैं ताकि आम चुनावों में किसान की नाराजगी वोट न काट ले. कर्जमाफी के ऐलान से वोट बचेंगे या नहीं, ये तो आम चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन इतना तय है कि कर्ज माफी की होड़ आम कर दाताओं की जेब जरूर काट लेगी.

दरअसल 2017 से देश में जारी किसान कर्ज माफी के राजनीतिक दांव से ज्यादातर राज्यों का खजाना दबाव झेल रहा है. किसान कर्ज को माफ करने की शुरुआत करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 34,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया और राज्य की जीडीपी 1.3 फीसदी कम हो गई. इसके बाद उत्तर प्रदेश में बनी योगी सरकार ने 36,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की और राज्य की जीडीपी को 2.7 फीसदी की चोट पहुंची. फिर पंजाब ने 10,000 करोड़ और राजस्थान ने फरवरी 2008 में 8000 करोड़ रुपये के किसान कर्ज माफ किए और राज्यों की जीडीपी में 2.1 फीसदी और 0.9 फीसदी का नुकसान हुआ. इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी के मुताबिक इन सभी कर्ज माफी को मिलाकर इस दौरान कुल 1 लाख 72 हजार 146 करोड़ रुपये की कर्ज माफी का ऐलान किया जा चुका है.