घटने लगा अमेरिकी असर! UAE सहित अरब देशों ने नहीं की निंदा, जानें क्यों?

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने पिछले हफ्ते अपने पश्चिमी सहयोगियों को उस समय अचरज में डाल दिया, जब उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा के अमेरिका के एक प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहने का फैसला किया. UAE के इस कदम ने अमेरिका के सबसे करीबी मध्य पूर्व सहयोगियों में से एक की ऐसे युद्ध में तटस्थता की घोषणा कर दी है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्रुवीकरण कर दिया है. यूएई के राष्ट्रपति के सलाहकार का कहना है कि किसी एक का पक्ष लेने से केवल और ज्यादा हिंसा होगी. यूएई की प्राथमिकता सभी पक्षों को राजनीतिक समाधान खोजने के लिए बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करना है.

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने के केवल दो महीने से भी कम समय में यूक्रेन में युद्ध शुरू हो गया. यूक्रेन के मसले पर UAE का रूख यह दर्शाता है कि कैसे खाड़ी के देश अपने पारंपरिक सहयोगियों और नए साझेदारों के बीच अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे ये भी साफ है कि अपने सहयोगियों से रूस के हमले की साफ तौर से निंदा कराने में अमेरिका को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है. उधर अबू धाबी के क्राउन प्रिंस ने मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर कहा कि यूएई ने यूक्रेन संकट के लिए एक शांतिपूर्ण समाधान की अपील की है. जो सभी पक्षों के हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी देता है. उन्होंने पुतिन के साथ ऊर्जा सहयोग पर भी चर्चा की.

केवल UAE ही नहीं बल्कि दूसरे अरब राज्यों ने भी रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा करने से परहेज किया है. सऊदी अरब भी तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक+ (OPEC+) गठबंधन में रूस को अपना मुख्य भागीदार मानता है. उसने भी मंगलवार को कहा कि वह यूक्रेन में डी-एस्केलेशन (de-escalation) के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करता है. अरब लीग ने भी सोमवार को संयुक्त विज्ञप्ति में तनाव कम करने और संयम बरतने की अपील की, लेकिन यूक्रेन में रूस के हमले की निंदा नहीं की.

इस बारे में यूएई में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अब्दुलखालेक अब्दुल्ला ने कहा कि ‘यूएई को अब अमेरिका की कठपुतली के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. UAE वाशिंगटन से आदेश नहीं लेता है.’ UAE और अमेरिका के संबंधों में खटास जो बाइडन के सत्ता में आने के बाद पैदा हुई. उन्होंने यमन के ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को अमेरिका की आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा दिया. एक साल से भी कम समय के बाद हूतियों ने अबू धाबी पर घातक हमले शुरू कर दिए. अमेरिका ने भले ही यूएई की सुरक्षा को मजबूत करने का वादा किया है, लेकिन अबू धाबी चाहता है कि हूतियों को आतंकवादी संगठनों की सूची में फिर डाला जाए.

बता दें कि दिसंबर में ही UAE ने F-35 लड़ाकू जेट खरीदने के लिए अमेरिका के साथ 23 अरब डॉलर के सौदे के लिए हो रही बातचीत को रोक दिया. फिर पिछले महीने ही उसने घोषणा कर दी कि वह पहली बार चीन से लड़ाकू जेट खरीदने जा रहा है. पहले तो संयुक्त अरब अमीरात और रूस के बीच व्यापार मामूली था, लेकिन 1997 के बाद से यह दस गुना बढ़ गया है. इन सभी घटनाओं को देखते हुए साफ माना जा सकता है कि अमेरिका का मिडिल ईस्ट में असर घट रहा है.