मैरिटल रेप केस में आंख मूंदकर पश्चिम की नकल नहीं कर सकते- HC में केंद्र की दो टूक

मैरिटल रेप (marital rape ) को अपराध की श्रेणी में रखने या न रखने के मामले को लेकर चल रही सुनवाई में केंद्र सरकार (Government) ने स्पष्ट रुख अपनाते हुए कहा है कि हम इस मामले में आंख मूंदकर पश्चिमीकरण का अनुसरण (westernization) नहीं कर सकते. केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में चल रही सुनवाई के दौरान कहा है कि पश्चिम के कई देशों ने मैरिटल रेप को अपराध (Criminalize) की श्रेणी में रखा है, इसका यह मतलब नहीं है कि भारत भी आंख मूंदकर इसका अनुसरण कर लें. केंद्र ने कहा, हमारा देश विशाल विविधताओं से भरा देश है और इसमें हमारी अपनी समस्याएं हैं. साक्षरता, महिलाओं में आर्थिक सशक्तिकरण का अभाव, समाज का चरित्र, गरीबी जैसे कई कारक है, जिनपर मैरिटल रेप को अपराध बनाने से पहले विचार करने की आवश्यकता है.

सर्वानुमति के लिए व्यापक पहल की जरूरत

केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा है कि दहेज उत्पीड़न से संबंधित आईपीसी की धारा 498 का बेजा इस्तेमाल और वैवाहिक संबंधों में पत्नी द्वारा कब यौन संबंध की सहमति को वापस ले लिया गया, इसकी पहचान के लिए उचित तंत्र की कमी जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर सतर्कतापूर्वक भारत को विचार करना होगा. हम इस मामले में पश्चिमी देशों का आंख मूंदकर अनुसरण नहीं कर सकते. केंद्र न कहा कि मैरिटल रेप को परिभाषित करने से पहले समाज में सर्वानुमति के लिए व्यापक पहल करने की जरूरत है. इस मामले में अपराधीकरण पर विचार बनाने से पहले हमें यह देखना होगा कि वैवाहिक रेप में किस चीज को शामिल करना चाहिए और किस चीज को नहीं. इसके बाद ही हम मैरिटल रेप को परिभाषित कर पाएंगे.

परिस्थितिजन्य साक्ष्य निरर्थक हो सकता है

केंद्र सरकार ने कहा है कि यह तय करना मुश्किल लगता है कि वैवाहिक संबंध में कब किस परिस्थिति में महिला ने यौन संबंध बनाने की सहमति को वापस ले लिया. इसकी पहचान मुश्किल हो सकती है. केंद्र ने कहा कि वर्तमान में आईपीसी की धारा 376 के तहत अभियोक्ता की गवाही ही आरोपी को सजा दिलाने के लिए पर्य़ाप्त है. शरीर पर चोट के निशान, छाती, पीठ आदि पर खरोंच, प्राइवेट पार्ट पर निशान जैसे मेडिकल साक्ष्य आरोपों की पुष्टि कर सकता है. लेकिन मैरिटल रेप के आरोपों में ये सभी साक्ष्य बेकार हो सकते हैं. इसलिए यह साबित करना मुश्किल हो जाएगा कि कब महिला ने वैवाहिक संबंध में पति को दिए गए यौन संबंध बनाने के अधिकार को वापस ले लिया. इसमें परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी निरर्थक हो जाएगा.