छत्तीसगढ़ में बड़ा खतरा, स्‍कूल बंद होने से नक्सलियों की तरफ मुड़ सकते हैं छात्र!

रायपुर. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित ज़िलों के हज़ारों स्कूल विद्यार्थी महामारी के दौर में शिक्षा से वंचित हो चुके हैं. बांस या अस्थायी चीज़ों से बनाए जाने वाले 60 पोटा कैबिन स्कूलों के करीब 30,000 बच्चे अपने शिक्षा के भविष्य को लेकर अंधेरे में हैं. यही नहीं हज़ारों की संख्या में छात्रों को ड्रॉप आउट होना पड़ा है, तो नए छात्रों के नामांकन का तो सवाल ही नहीं उठता. बड़ा खतरा यह है कि तकरीबन दो ​सत्रों से स्कूल नहीं पहुंचने वाले छात्र अब नक्सलवाद की तरफ रुख न कर बैठें. सुरक्षा एजेंसियों ने यह अंदेशा जताया है कि जिस तरह माओवादी अपना नेटवर्क महामारी के दौरान बढ़ा रहे हैं, ज़्यादा चांस है कि ये स्कूली बच्चे इनके टारगेट हों.

छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा को लेकर कुछ बातें समझने की हैं. एक, यहां दूरदराज के इलाकों तक स्कूलों की कमी है इसलिए अस्थायी पोटा कैबिन स्कूल संचालित होते रहे हैं, जो कोरोना काल में बंद हो गए. इसी तरह राज्य भर में करीब दो लाख रेज़िडेंशियल स्कूल हैं, ये भी बंद हैं. अब बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बस्तर जैसे नक्सलवाद प्रभावित ज़िलों में स्कूल बंद होने से शिक्षा के साथ ही पोषण आहार भी बंद हुआ है, तो दूरस्थ गांवों के टीनेजर बच्चों के भविष्य को लेकर संकट और अंदेशों की स्थिति बन गई है.

हालात पर क्या कह रहे हैं अफसर?

बीजापुर में एक स्कूल वॉर्डन की मानें तो गांवों तक इंटरनेट की कनेक्टिविटी नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे में स्कूलों के बंद होने से बड़ी उम्र के कुछ बच्चे तो दो चार बार पूछने आए कि स्कूल कब तक खुलेंगे लेकिन छोटे बच्चे पूरी तरह शिक्षा से कट चुके हैं. पिछले ही दिनों कांकेर के कोयालीबेड़ा के स्टूडेंट्स ने विरोध प्रदर्शन करते हुए दावा किया कि उनके ब्लॉक में ही 3000 से ज़्यादा स्कूली बच्चे महामारी के चलते ड्रॉप आउट हो गए

इधर, रायपुर के अधिकारियों का दावा है कि कोविड संक्रमण को ध्यान में रखते हुए जल्द से जल्द रेज़िडेंशियल स्कूलों को खोलने की कवायद की जाएगी. विडंबना यह है कि शहरों में पिछले 15 दिनों से स्कूलों की पढ़ाई ऑनलाइन शुरू हो चुकी है, लेकिन इंटरनेट से दूर गांवों में शिक्षा के कदम किसी तरह नहीं पहुंच रहे हैं. उल्टे खतरे की आशंका और बढ़ रही है.

तो क्या नक्सली बन सकते हैं छात्र?

बस्तर के अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट कहती है कि करीब 50,000 स्कूली बच्चे नक्सलियों के प्रभाव में आ सकते हैं. एक सीनियर आईपीएस अफसर ने कहा, 'ये किशोर उम्र के बच्चे पोस्टर, बैनर लिखने लायक हैं और इतने बड़े भी हैं कि इनका ब्रेनवॉश किया जा सके... हाल में हुए कुछ प्रदर्शनों में हमने 16 से 18 साल के उम्र के बच्चों की संख्या को लगातार बढ़ता पाया है. और ये बच्चे पहले स्कूलों में जाते थे.'

सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक 2020 से महामारी के चलते जो हालात बने, उनके कारण मज़दूरों व अन्य प्रवासियों के साथ ही बच्चे भी रेज़िडेंशियल स्कूलों से अपने घरों और गांवों को लौटे. इस मौके का पूरा फायदा नक्सली उठा रहे हैं और तबसे ही दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में अपने नेटवर्क को बड़ा और मज़बूत कर रहे हैं. हालांकि बस्तर के आईजी ने यह भी कहा कि इन कोशिशों को नाकाम किया जाएगा और स्कूल खुलते ही इन बच्चों को वापस स्कूल भेजने की पूरी कोशिश की जाएगी.