34 साल में नहीं बन सका गोले का मंदिर पर अस्पताल, इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के वादों से बाहर

गोले का मंदिर चौराहे पर प्रस्तावित एक हजार बिस्तर का सरकारी अस्पताल 34 साल बाद भी प्रस्तावित ही है। 1986 की केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए माधवराव सिंधिया ने उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इस अस्पताल के लिए शिलान्यास कराया था। लेकिन बजट के अभाव में इस अस्पताल का निर्माण नहीं हो पाया और 1990 के बाद हॉटलाइन कंपनी की मदद से इसका काम शुरू भी हुआ तो वो भी अधूरे पर बंद हो गया।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार लौटने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता के इस सपने को पूरा करने के लिए कार्रवाई शुरू भी कराई, तो सरकार गिरने के बाद वह सभी प्रक्रिया बंद हो गई। अब स्थिति ये है कि इस जमीन और अधूरे भवन में गाय रखी जा रही हैं। इतना ही नहीं, भाजपा हो या कांग्रेस। दोनों ही दलों ने अपने घोषणा पत्र में इस अस्पताल को कोई स्थान नहीं दिया है।
1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास किया था, 3 बार कोशिश तो हुई... लेकिन हर बार फेल रही
सऊदी अरब के सहयोग से इस अस्पताल का निर्माण होना था और इसके लिए सहमति बनने के बाद माधवराव सिंधिया ने 1986 में जमीन का आवंटन अस्पताल के लिए कराया। फिर 10 जून 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इंदिरा गांधी चिकित्सालय (एक हजार बिस्तर) के लिए शिलान्यास कराया। लेकिन कुवैत व इराक युद्ध के कारण अस्पताल निर्माण का मामला अटक गया। इसके कुछ साल बाद यह जमीन हॉटलाइन इंडस्ट्रीज ग्रुप को अस्पताल बनाने के लिए दी गई। तब मार्क हॉस्पिटल बनाने के लिए काम शुरू हुआ और जमीन के कुछ हिस्से पर स्ट्रक्चर खड़ा भी हुआ, लेकिन ग्रुप के घाटे में जाने के बाद मालनपुर में इंडस्ट्रीज बंद हुई और अस्पताल का भी काम बंद हो गया।
दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल से ये अस्पताल बनाने व संचालित करने के लिए 2002 में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने एमओयू पर चर्चा शुरू की। लेकिन 2003 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने इस एमओयू में दिलचस्पी नहीं ली, बल्कि महिला एवं बाल विकास व दूसरे सरकारी विभागों को जमीन का आवंटन शुरू कर दिया। मामला हाईकोर्ट में जाने के बाद सरकार ने ये सभी आवंटन निरस्त किए।
कांग्रेस में रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अस्पताल निर्माण के लिए मप्र की तत्कालीन भाजपा सरकार को 14 बार पत्र भी लिखे। लेकिन, अस्पताल में सरकार ने रूचि नहीं दिखाई। फिर मप्र की सरकार में कांग्रेस के लौटने पर इस प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू हुआ था लेकिन अब पिछले 8 महीने से ये मामला फिर फाइलों में धूल खा रहा। इस कैंपस में अभी 1650 गौवंश को रखा जा रहा है।