लॉकडाउन से देश भर में दूध के कारोबार को जबर्दस्त चोट, डिमांड ठप, पशुपालक परेशान

कोरोना संकट से निपटने के लिए देश भर में लगाए लॉकडाउन को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है. लॉकडाउन में सारे कारोबार, मिठाई की दुकानों, ढाबों और होटलों में ताले लगे हुए हैं तो शादी-विवाह और तीज त्योहार भी नहीं हो पा रहे हैं. इसकी वजह से दूध, पनीर और खोये की डिमांड ठप हो गई है. इसके चलते दूध कारोबारी और पशुपालकों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. एक तरफ किसान को जानवरों का चारा मंहगा मिल रहा है तो दूसरी तरफ डेयरी वाले भी मनमाने रेट पर दूध खरीद रहे हैं. इस तरह से दूध उत्पादकों-किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.

  • लॉकडाउन में दुकानें बंद, दूध के कारोबार पर छाया संकट
  • लॉकडाउन के बाद किसान 15 रुपये प्रति लीटर घाटे पर बेच रहा दूध
  • किसान को पशुआहार की बोरी 4 से 5 सौ रुपये मंहगी मिल रही

देश में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन उत्तर प्रदेश (29.05 मीट्रिक टन) में होता है. पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के रतनपुरी गांव के रहने वाले दीपक सोम के घर में 20 भैंसें और 5 गाय हैं, जिनसे हर रोज करीब 60 लीटर दूध होता है. इस दूध को बेचना आज उनके लिए मुश्किल हो रहा है. वो बताते हैं कि लॉकडाउन में कई दिनों तो ऐसा भी रहा है कि एक भी लीटर दूध नहीं बिका है. हालत ये हो गई है कि लॉकडाउन से पहले डेयरी वाले 40 रुपये प्रति लीटर दूध लिया करते थे आज उसे 28 से 30 रुपये प्रति लीटर ले रहे हैं.

वहीं, मेरठ के धौलड़ी गांव के रहने वाले मुसाहिद चौधरी की जिंदगी कठिन दौर से गुजर रही है. उनके घर पर 200 से 250 लीटर दूध पैदा होता है, जिसे बेचने के लिए उन्हें नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. वो बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से होटल और मिठाई वालों की दुकानें बंद हैं, जिसकी वजह से डेयरी प्लांट वाले 23 रुपये प्रति लीटर दूध ले रहे हैं. इसके चलते कम से कम 15 रुपये प्रति लीटर का नुकसान उठाना पड़ रहा है. पिछले एक महीने में करीब 2 से 3 लाख रुपये का नुकसान हो चुका है.

वह बताते हैं कि लॉकडाउन में जानवरों का आहार भी नहीं मिल पा रहा है. पशु आहार की जो बोरी एक हजार रुपये की मिलती थी वो आज 15 सौ रुपये की मिल रही है. दूध बिके या न बिके, लेकिन जानवरों को खिलाना-पिलाना तो पड़ेगा. वो कहते हैं कि लॉकडाउन में कई दिन तो ऐसा रहा कि दूध बिका ही नहीं तो भूसे में ही दूध को मिलाकर जानवरों को खिलाना पड़ा है.

रायबरेली में खोया और पनीर कारोबारी गिरीश चंद्र गुप्ता कहते हैं कि खोया मंडी में हर रोज 8 से 10 क्विंटल खोया आता था, जिसे छोटे किसान लेकर आते थे. इसी तरह से 2 से तीन क्विंटल पनीर आता था. इस समय दुकानों और शादियों के बंद होने के चलते खोया-पनीर का काम भी बंद है. इसके चलते न तो किसान खोया बना पा रहा है और न ही पनीर. ये बिक्री का सीजन था, जो अब पूरी तरह से खराब हो गया है. किसान की हालत बहुत ही खराब हो गई है, क्योंकि उनकी जिंदगी का एक यही जरिया था.

हरियाणा के मेवात के रफीक चौधरी कहते हैं कि पिछले एक महीने से हम दूध नहीं बेच पा रहे हैं. वो कहते हैं कि हमारे पास 25 भैंसें हैं, जिनसे हर रोज 60 से 70 लीटर दूध होता है. इस दूध को लेकर हम पहले दिल्ली जाते थे और वहां की कई छोटी-छोटी डेयरी पर दूध देने का काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उन्होंने दूध लेने से इनकार कर दिया है. अब हम दूध से घी बनाने का काम कर रहे हैं, क्योंकि यहां कोई दूध नहीं ले रहा है. ऐसे में दूध का फिलहाल घी बनाकर रख रहे हैं. अब जब लॉकडाउन खुलेगा तो घी ही बेचेंगे.

किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि दूध उत्पादकों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. गर्मी के महीने में पशुपालकों के सामने हरे चारे की दिक्कत है तो दूसरी तरफ ट्रांसपोर्ट सेवाएं ठप होने से पशुआहार की समस्या बढ़ गई है. इसकी वजह से किसानों को एक तरफ तो चारा महंगा मिल रहा तो दूसरी तरफ सारी दुकानें बंद हैं. इसके चलते दूध की डिमांड कम हो गई तो किसानों को सस्ता दूध बेचना पड़ रहा है. दूध की ब्रिक्री में 50 फीसदी गिरावट आई है. दूध का कारोबार किसानों की खेती के साथ और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पूरक के तौर पर चलते हैं, लेकिन लॉकडाउन ने इसे बर्बाद कर दिया है.