गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से 3 जजों का किनारा, नई पीठ गठित

सुप्रीम कोर्ट के 3 जज भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की सुनवाई से अब तक खुद को अलग कर चुके हैं. शीर्ष कोर्ट के सूत्रों ने साफ किया है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस आरएस गवई और एस. रविंद्र भट्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.

लेखक नवलखा को भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी बनाया गया है. उन्होंने अदालत में पुणे पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की हुई है. भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार यानी आज सुनवाई कर रहा है. जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है.

इससे पहले CJI रंजन गोगोई, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने सुनवाई से खुद को अलग किया था. इसके बाद CJI जस्टिस रंजन गोगोई ने नई पीठ का गठन किया है. गौतम नवलखा ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. बांबे हाईकोर्ट ने नवलखा के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था.  

यह तीसरी बार है, जब किसी न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है. एक अक्टूबर को न्यायाधीश एन.वी. रमन, बी.आर. गवई और आर. सुभाष रेड्डी की तीन सदस्यीय पीठ ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. इससे पहले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी इस मामले की सुनवाई से खुद को हटा लिया था.

क्या है मामला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 13 सितंबर को नवलखा की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने पुणे पुलिस द्वारा दायर एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. नवलखा पर पिछले साल की शुरुआत में नक्सलियों से संपर्क रखने और भीमा-कोरेगांव व एल्गार परिषद के मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज कर दिए जाने के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. यह कदम हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ नवलखा की अपील के बाद उठाया गया. इस याचिका का मतलब है कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना आदेश पारित नहीं कर सकती.

पुणे पुलिस ने नवलखा और नौ अन्य मानव अधिकार व नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को भारत के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया था. उनकी गिरफ्तारी 31 दिसंबर, 2017 को भीमा-कोरेगांव में एल्गार परिषद की बैठक आयोजित करने के आरोप में की गई. एल्गार परिषद के अगले ही दिन एक जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव में जातीय दंगे व हिंसा शुरू हो गई थी.

इसके अलावा इन कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा-माओवादी) के साथ कथित संबंध रखने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या कर चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप है.