ग्वालियर हाईकोर्ट में 7 याचिकाओं सुनवाई एक साथ, सहायक वार्डन की नियुक्तियां अवैध, बर्खास्तगी बरकरार
ग्वालियर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच की एकल पीठ ने कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय और छात्रावासों में सहायक वार्डन के पद पर की गयी नियुक्तियों को नियम विरूद्ध करार देते हुए कर्मचारियों की बर्खास्तगी को सही ठहराया गया है। राज्य शासन ने 27 जिलों में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय व छात्रावास में सहायक वार्डन के पद की नियुक्ति की गयी थी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि जिन नियुक्तियों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। वह शुरूआत से ही शून्य (नॉन-एस्ट) मानी जायेंगी। इस आधार पर सेवा में पुनः स्थापना और बकाया वेतन की मांग को अस्वीकार कर दिया गया है। पहली बार ऐसा हुआ है कि हाईकोर्ट ने 7 याचिकाओं को एक साथ सुना है और उसके बाद यह फैसला आया है।
ग्वालियर हाईकोर्ट ने लगायी गयी याचिका में याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्ष 2007 से लगातार सेवा दे रही थी। उन्हें समय-समय पर ट्रेनिंग दी गयी और मानदेय भी बढ़ाया गया। लम्बे समय तक सेवा देने केबाद अचानक उनकी नियुक्ति समाप्त कर दी गयी। जो प्राकृतिक न्याय क सिद्धांतों के खिलाु है। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड का परीक्षण करते हुए कहा है कि कस्तूरबा गांधीबालिका विद्यालय परियोजना के तहत सहायक वार्डन की नियुक्ति के लिये 27 मार्च 2006 को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गये थे। इनके मुताबिक नियुक्ति के लिये विज्ञापन जारी जारी होना चाहिये, आवेदनों की जिला जेंडर कोर ग्रुप द्वारा जांच और फिर कलेक्टर की स्वीकृति से जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा नियुक्ति अनिवार्य थी। लेकिन प्रकरणों में यह सामने आया कि नियुक्तियां केवल पीटीए या स्कूल प्रबंधन समिति के प्रस्ताव के आधार पर वार्डन द्वारा कर दी गयी, जोकि सक्षम प्राधिकारी नहीं था।
कोर्ट ने नए नियम का भी हवाला दिया
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी माना कि 2021 में नई नीति लागू हो चुकी है, जिसके तहत सहायक वार्डन के पद पर अब केवल शिक्षक वर्ग से ही पदस्थापना की जानी है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में किसी तरह का पुनर्विचार या पुनर्नियुक्ति का निर्देश देना निरर्थक होगा। परिणामस्वरूप, सभी 07 याचिकाएं खारिज कर दी गईं और बर्खास्तगी के आदेश को वैध ठहराया गया।सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि जांच समिति और जिला नियुक्ति समिति की रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि नियुक्तियां तय प्रक्रिया के विपरीत की गई थीं। केवल लंबे समय तक सेवा कर लेने से अवैध नियुक्ति को वैध नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि नियमों के उल्लंघन में की गई नियुक्तियों पर कोई समानता या सहानुभूति आधारित राहत नहीं दी जा सकती।