चीन को ​थाल में सजाकर 12,000 करोड़ रुपये का निर्यात बाजार दे रहा भारत!

भारत सरकार के एक निर्णय से चीन को थाल में सजाकर 12,000 करोड़ रुपये का निर्यात का बाजार मिलने जा रहा है. भारत सरकार के इस निर्णय पर जानकार सवाल उठा रहे हैं. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला..

भारत में अब आत्मनिर्भरता आंदोलन जोर पकड़ रहा है और चीन के आयात पर निर्भरता कम करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इस बीच सरकार देश में बनने वाले 27 तरह के कीटनाशकों के उत्पादन पर रोक लगाने जा रही है. इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि इससे ग्लोबल जेनरिक पेस्टिसाइड मार्केट पर चीन का कब्जा हो जाएगा और इस तरह से भारत सरकार ने बैठे-बिठाए चीन को 12,000 करोड़ रुपये का निर्यात बाजार थाली में सजाकर पेश कर दिया है.

सिमट जाएगा कीटनाशकों का स्वदेशी बाजार

घरदा केमिकल्स के वाइस प्रेसिडेंट के.ए.सिंह कहते हैं, 'इस बैन से भारत का पेस्टिसाइड बाजार सिमटकर 50 फीसदी तक हो जाएगा और हमने अपने चीनी प्रतिद्वंद्वियों को करीब 12,000 करोड़ रुपये का निर्यात बाजार एक तरह से सौंप दिया है. यह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के उद्देश्य को नुकसान पहुंचाने वाला है.'

सरकार ने उठाए ये कदम

गौरतलब है कि कृषि मंत्रालय ने गत 14 मई को एक नोटिस जारी कर इस बारे में एक प्रारूप नोटिफिकेशन जारी किया कि उन 27 कीटनाशकों पर सरकार रोक लगाना चाहती है जिन्हें एक सरकारी कमिटी ने मनुष्यों और जानवरों के लिए नुकसानदेह माना है. इस बारे में सभी पक्षों को अपनी राय रखने के लिए 45 दिन का समय दिया गया है. पेस्टिसाइड्स मैन्युफैक्चरर्स ऐंड फॉर्मूलेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (PMFAI) ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कमिटी ने तो उनके विचारों को सुना ही नहीं. इंडस्ट्री बॉडी ने कहा कि इस बारे में सरकार एक उच्च स्तरीय वैज्ञानिक समिति बनाए जो मामले पर अंतिम रूप से विचार करे.

 

क्या कहते हैं इंडस्ट्री के लोग

PMFAI के प्रेसिडेंट और एमिको पेस्टिसाइड्स के चेयरमैन प्रदीप दवे ने कहा, 'भारत में ये सभी 27 तत्व नियामक अथॉरिटी CIB और RC में रजिस्टर्ड हैं और सुरक्षा एवं प्रभावोत्पादकता के सभी वैज्ञानिक मूल्यांकन को पूरा करते हैं. इनका इस्तेमाल भारत में 70 के दशक से बिना किसी जोखिम या मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण पर किसी तरह के विपरीत असर के हो रहा है. इनमें मैलाथियान भी शामिल है, जिसका सरकार ने हाल में टिड्डियों के हमलों के दौरान जमकर इस्तेमाल किया है.'

दवे ने कहा कि जिस डॉ. अनुपम वर्मा कमिटी ने बैन की सिफारिश की है उसका निर्णय बिल्कुल मनमाना है. उन्होंने कहा, 'इस कमिटी की स्थापना 2013 में तीन नियॉन इकोटिनाइट्डस के इस्तेमाल की जांच के लिए की गई थी, लेकिन जल्दी ही इसे 66 जेनरिक इंसेक्टिसाइड्स पर विचार करने का अधिकार दे दिया गया जिन पर दूसरों देशों में प्रतिबंध या अंकुश है और उनका भारत में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह एफएओ की सलाह के खिलाफ है जो कहता है कि हर देश को अपनी जरूरतों, फसलों, जलवायु आदि के मुताबिक कीटनाशक चुनना चाहिए.'

इन कीटनाशकों का घरेलू बाजार में करीब 40 फीसदी का कब्जा है. इन पर बैन लगाने से किसानों को महंगे आयातित ब्रांडों का इस्तेमाल करना पड़ेगा. भारत में बनने वाला जो कीटनाशक 350-450 रुपये प्रति लीटर में मिल जाता है, वह आयातित होने के बाद 12,00 से 2000 रुपये लीटर मिलेगा.