214 अर्थशास्त्रियों की मोदी सरकार से मांग- खपत पर NSO की रिपोर्ट जारी करें

नोबेल पुरस्कार विजेता एंगस डीटोन, फ्रेंच इकोनॉमिस्ट थॉमस पिकेट्टी और योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन सहित देश-दुनिया के 214 अर्थशास्त्रियों ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से मांग की है कि वह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के सर्वे जारी करे.

यह मांग मीडिया में इस रिपोर्ट के लीक होने के संदर्भ में आई है, जिसमें यह कहा गया था कि भारत का उपभोक्ता खपत 45 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने यह दावा किया था कि NSO की रिपोर्ट लीक होकर उसे मिली है और उसके मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में उपभोक्ता खर्च साल 1973 के बाद सबसे कम रहा है.

क्या कहा इकोनॉमिस्ट ने

इन सभी इकोनॉमिस्ट ने एक बयान जारी कर यह मांग की है कि 75वें उपभोक्ता व्यय सहित नेशनल सेम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा किए गए सभी सर्वे को तत्काल जारी किया जाए.

अर्थशास्त्रियों ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार इस रिपोर्ट को इस वजह से जारी नहीं कर रही है, क्योंकि अर्थव्यवस्था की सुस्ती के इस दौर में यह सरकार के लिए एक और बदनामी की वजह बन सकती है. देश में गरीबी और असमानता को मापने और उसकी निगरानी के लिए खपत सर्वे काफी महत्वपूर्ण है.

क्या कहा सरकार ने

कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने सफाई दी है कि पहले के सर्वे के मुकाबले 'प्रशासनिक आंकड़ों' में ज्यादा विचलन की वजह से इस बार अभी सर्वे के नतीजे नहीं जारी किए जा रहे हैं.

कथि‍त लीक रिपोर्ट में कहा गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी मांग कमजोर होने की वजह से 1973 के बाद पहली बार वित्त वर्ष 2017-18 में देश में उपभोक्ता व्यय में कमी आई है. कई एक्सपर्ट पहले से ही इसकी चेतावनी दे रहे थे. यह इस बात का संकेत है कि देश में गरीबी बढ़ रही है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी इसको लेकर सरकार पर सवाल उठाए थे.

क्या है कथ‍ित रिपोर्ट में

NSO से जुड़े नेशनल सेम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के द्वारा किए गए खपत पर सर्वे 'की इंडिकेटर्स: हाउसहोल्ड कंज्यूमर एक्सपेंडीचर इन इंडिया' की अखबार में लीक रिपोर्ट से यह खुलासा होता है कि देश में प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च में 3.7 फीसदी की गिरावट आई है. यह वित्त वर्ष 2011-12 के 1,501 रुपये घटकर वित्त वर्ष 2017-18 में 1,446 रुपये रह गया है. इस आंकड़े को वित्त वर्ष 2009-10 को बेस ईयर मानते हुए महंगाई के हिसाब से समायोजित किया गया है.