कांग्रेस को किनारे कर यूं तीसरा मोर्चा बनाने में जुटे हैं शरद पवार

तीसरा मोर्चा खड़ा करने में शरद पवार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. पवार न सिर्फ तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे हैं बल्कि वो ये भी कोशिश कर रहे हैं कि इस गठबंधन से कांग्रेस को दूर रखा जाए.
वास्तव में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी के साथ-साथ कई क्षेत्रीय पार्टियां नहीं चाहती है कि तीसरे मोर्चे में कांग्रेस को कोई नेतृत्व मिले. वो राहुल गांधी के नेतृत्व के पक्ष में नहीं हैं.

क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि 2019 के चुनाव में वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे सकते हैं न कि कांग्रेस. पिछले चार साल में अगर मोदी की जीत के रथ को कभी किसी ने रोका है तो वो क्षेत्रीय पार्टियां ही है.

बीजेपी के विस्तार के लिए मोदी को दो मोर्चों यानी राज्य और केंद्र में एक साथ लड़ना होगा. प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने अलग-अलग राज्यों में पहले ही मायावती, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल को नाराज़ कर दिया है. लिहाजा बीजेपी ने इस रूख से न सिर्फ अपने मौजूदा सहयोगियों को बल्कि भावी मित्र को भी चेतावनी दी है.

एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार बीजेपी के खिलाफ लोगों को इकठ्ठा करने में अहम रोल अदा कर रहे हैं. शरद पवार को राजनीति का लंबा अनुभव है लिहाजा गैर भाजपा दलों को उनसे बातचीत करने में कोई दिक्कत नहीं होती. तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दल बीजेपी को हराने के लिए शरद पवार के साथ मिल कर काम कर सकते हैं. बीजू जनता दल, टीडीपी और टीआरएस भी तीसरे मोर्चे में शामिल हो कर बीजेपी को चुनौती दे सकती है.

शरद पवार के बसपा के संस्थापक कांशी राम और उड़ीसा के दिवंगत बीजू पटनायक के साथ अच्छे संबंध थे. इसके अलावा, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला से भी पवार की दोस्ती रही है.

साल 2014 में सत्ता से हटने के बाद शरद पवार लगातार महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं. वहां वो गैर-राजनीतिक संगठनों, सांस्कृतिक समूहों और लेखकों के साथ लगातार मिल रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी ने साल 2004 से 10 साल तक यूपीए का ज़रूर नेतृत्व किया लेकिन कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी को बीजेडी, टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के साथ कामकाज करना मुश्किल होगा.

इन दिनों जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटी हैं कांग्रेस के राज्य प्रमुख ने उन्हें एक अवसरवादी नेता कहा है.

पिछले दिनों कांग्रेस महाधिवेशन में पार्टी ने कहा था कि वो समान विचार वाले दलों से हाथ मिलाने के लिए तैयार है. लेकिन कुछ लोगों ने अभी से ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है.

गैर-भाजपा दलों को ये अच्छी तरह पता है कि 2019 का चुनाव आसान नहीं है. लेकिन फिर भी वो कोई विश्वसनीय मोर्चा बनाने में कामयाब नहीं हुए हैं. कांग्रेस का एक हिस्सा चुनाव के बाद गठजोड़ की बात कर रहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष के करीबी एक नेता का कहना है "अगर क्षेत्रीय पार्टियां 150 लोकसभा सीटों पर जीतती हैं, तो कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए उन्हें समर्थन देना होगा. ऐसे में वे अपने प्रधानमंत्री को चुनेंगे और अगर कांग्रेस को खुद 150 सीटें मिलते है तो क्षेत्रीय पार्टियों को हमें समर्थन देना होगा. "

मौजूदा हालात में कांग्रेस बिहार में आरजेडी पर भरोसा कर सकती है. कांग्रेस को उम्मीद है उत्तर प्रदेश में उन्हें समाजवादी पार्टी और बसपा समर्थन मिल सकता है.

अनिश्चितता के ऐसे माहौल में शरद पवार के नाम पर आम सहमति बन सकती है. आने वाले महीनों में होने वाले चुनाव में कांग्रेस की क्या स्थिति रहती है इस बात से ही गैर भाजपा मोर्चे में राहुल गांधी के नेतृत्व पर तस्वीर साफ होगी.