धरोहरों से समृद्ध धरा, अंचल में 118 विरासतें, इनमें सिर्फ 31 ही संरक्षित

ग्वालियर. ग्वालियर की विरासत और संस्कृति की शुरू से ही प्रभावी रही है। यही वजह है कि यहां शासन करने वाले शासकों की संख्या सैंकडों में है। अकेले ग्वालियर किले पर ही 23 राजवंशों ने शासन किया इनमें से कुछ राजवंशों ने अंतराल के बाद दो से तीन बार शासन किया। राजा सूरजपाल के वंश से ही करीब 84 राजा हुए जिन्होंने अंचल में सांस्कृतिक विरासत का विस्तार किया। ग्वालियर के प्रति अन्य राज्य या देष के शासकों का आकर्षण यहां का अभेद किला और दीवारों पर की गई कारीगरी बनी। ग्वालियर आने वाले शासकों का मानना था इस दुर्ग को जीतना यानि आधे हिंदुस्तान को फतह करने के बराबर है। आईआईटीटीएम के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर बरूआ का कहना है कि ग्वालियर के अलावा अंचल में सांस्कृतिक विरासत को आगे बढाने में राजा मान सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसका उल्लेख बाबरनामा में भी मिलता है। अंचल में कई विरासतों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर लिया गया है जबकि कुद देखरेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हालत में है उन्हें सुधारने की जरूरत है।
87 विरासतों को सुधार की आस
118 कुल विरासत है अंचल में
31 विरासतों को संरक्षित घोषित किया गया है। वहां प्राचीन स्मारक सुरक्षा 1958 अधिनियम का पालन नजर आता है।
87 शेष विरासतें भी पर्यटन से गुलजार हों इसके लिए काम करने की जरूरत है।
यह हैं प्रमुख विरासतें
ग्वालियर किला- यूनेस्को की सूची में अस्थायी तौर पर शामिल।
महाराज बाडा- विश्व की सात शैलियों की इमारतों का संगम।
बटेश्वरा-यहां शिव मंदिरों की श्रृंखला है।
मितावली- देश की पुरानी संसद इसी तर्ज पर बनी थी।
कुंतलपुर- यहां आज भी मौजूद है कर्ण की जन्मस्थली के अवशेष।
सिंधिया परिवार की छत्रियां- मां-बेटे के प्रेम की अनूठी मिसाल।
इंजीनियरिंग की बेहतरीन कारीगरी की मिसाल है नूराबाद का प्राचीन पुल
ग्वालियर से 24 किमी दूर सांके नदी पर बना नूराबाद पुल इंजीनियरिंग की बेहतरीन मिसाल है। मुगल बादशाह जहांगीर ने 16वीं शताब्दी में अपनी पत्नी नूरजहां के नाम पर इसका निर्माण कराया था। इस पर 7 मेहराबें तैयार की गई थी। ये मेहराबें लगभग 6 मीर ऊंची है और पांच मीटर चौडी है। हालांकि इस पुल के पास ही एक नया पुल बन गया है। जिसे दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे प्राचीन विरासत मुस्कुरा रही हो।